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अपरीक्षितकारक
၃ उसके साथ जल्दी से नाई के घर पहुँचे । वहां उन्होंने लहू से सने शरीर वाले इधर-उधर भागते हुए नंगे जैन साधुओं को देखकर पूछा , “अरे! यह क्या बात है ?" उन सबने उस नाई की बात कही। इस पर सिपाही नाई को बाँधकर बचे-खुचे जैन साधुओं के साथ उसे कचहरी (धर्माधिष्ठान) लाए।
न्यायाधीशों ने नाई से पूछा, "अरे! तूने यह कैसा कुकृत्य किया ? उसने कहा, "मैं क्या करूं, मणिभद्र सेठ के घर मैंने ऐसी घटना देखी थी।" और उसने मणिभद्र के घर जो देखा था सो सब कहा। इस पर मणिभद्र को बुलाकर न्यायाधीशों ने कहा , “हे सेठ ! तुमने एक जैन साधु को क्यों मारा ?" उसने जैन साधु वाली घटना ब्यौरेवार उन्हें बतला दी । इस पर उन्होंने कहा, “इस दुष्ट नकलची नाई को फांसी पर चढ़ा दो।" ऐसा होने के बाद उन्होंने कहा---
"जैसा नाई ने किया वैसा विना ठीक देखे, जाने, सुने या परखने के
बिना मनुष्य को काम नहीं करना चाहिए । अथवा ठीक ही कहा है कि "बिना सोचे-समझे कोई काम नहीं करना चाहिए। सोच-समझकर ही काम करना चाहिए, नहीं तो जैसे ब्राह्मण को नेवले के लिए दुःख हुआ वैसा ही बाद में दुःख होगा।" मणिभद्र ने कहा, “यह कैसे ?" न्यायाधीश कहने लगे--
./ब्राह्मण और नेवले की कथा "किसी नगर में देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी ने एक लड़के को जन्म दिया। उसी दिन एक नेवली बच्चा देकर मर गईं। बच्चों को प्यार करने वाली ब्राह्मणी ने दूध पिलाकर और बदन की मालिश करके उस नेवले को अपने लड़के की तरह पाला-पोसा, पर वह इसलिए उसका विश्वास नहीं करती थी कि कहीं अपने जाति-दोष से वह लड़के को नुक्सान न पहुंचावे । ऐसा उसे मन में भय था। कहा भी है कि
"दुविनीत , बदसूरत, मर्ख, बदचलन और दुष्ट पुत्र भी आदमियों