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अपरीक्षितकारक
၃% इसी बीच उसकी स्त्री ने पैर धोने के लिए किसी नाई को बुलाया। उसी समय पहले कहे अनुसार एक जैन साधु सहसा प्रकट हुआ। सेठ ने उसे देखकर खुशी-खुशी पास में पड़ी हुई लकड़ी उसके सिर पर मारी । वह भी सोना होकर उनी दम जमीन पर गिर गया। सेठ ने उसे छिपाकर घर में रख दिया और नाई को संतोष देकर कहा, "मेरा दिया हुआ यह धन और वस्त्र तू ले। किसी से यह बात मत कहना।" ____नाई भी अपने घर जाकर सोचने लगा, “अवश्य ही सब नंगे सिर पर लाठी मारने ने सोने के हो जाते हैं। इसलिए मैं सबेरे बहुत से नंगों को बुलाकर डंडे से मारूंगा, जिससे मुझे बहुत सा सोना मिल जाय।" इस प्रकार सोचते हुए बड़े ही कष्ट से उसकी रात कटी। बाद में बड़े सवेरे उठकर वह एक बड़ा डंडा लेकर जैन विहार में जाकर, जिनेन्द्र की तीन बार प्रदक्षिणा करके, जमीन पर घुटने टेककर, मुंह के सामने दुपट्टे का एक छोर रखकर ऊंचे स्वर से यह श्लोक पढ़ने लगा -
"केवल ज्ञानी जिनों की जय हो, जिनका चित्त काम-विकारों के
पैदा होने के लिए ऊसर के समान है। और भी "वही जीभ है जो जिन की स्तुति करती है, वही चित्त है जो जिन में लगता है और जो हाथ उनकी पूजा करते हैं वे ही प्रशंसनीय हैं। और भी "ध्यान का बहाना करके किस स्त्री का सोच करता है ? एक क्षण के लिए आंख खोलकर कामबाण से पीड़ित जनों को देखकर त्राता होते हुए भी तू रक्षा नहीं करता। तुझसे बढ़कर निर्दयी आदमी दूसरा कौन है ? मार की पत्नियों ने जलन से जिससे इस तरह
कहा ऐसे जिन-बुद्ध तेरी रक्षा करें।" इस तरह स्तुति करने बाद उसने मुख्य जैन साधु के पास जाकर, जमीन पर घुटने टेककर कहा, "आपको नमस्कार है।" ऐसा कहते हुए धर्म बढ़ने का