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लब्धप्रणाश
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प्यार से उस बढ़ई ने ऊंट के बच्चे के गले में एक घंटा बांध दिया।
इसके बाद रथकार ने सोचा, “अब दूसरे छोटे काम करने से क्या फायदा? जब इस ऊंटनी को पालने से मेरे कुटुम्ब का पालन-पोषण भली भांति हो जाता है फिर दूसरे काम से क्या प्रयोजन ?" यह सोचकर घर आकर उसने अपनी स्त्री से कहा , “यह रोजगार बहुत फायदे का है । अगर तेरी राय होतो किसी महाजन से कुछ रुपये लेकर मैं ऊंट खरीदने गुजरात जाऊं। जब तक मैं ऊंटनी खरीदकर लौट न आऊंतब तक तु इन दोनों जानवरों की रक्षा करना।" इसके बाद गुजरात जाकर और एक दूसरी ऊंटनी खरीदकर वह घर लौटा। बहुत कहने से क्या, ऐसा करके उसने बहुत से ऊंट और ऊंटों के बच्चे इकट्ठे कर लिए। ऊंटों का बड़ा दल बनाकर उसने एक रखवाला रख. लिया । उसे वह साल में एक ऊंट का बच्चा तनख्वाह में देता था और सुबहशाम उसे ऊंटनी का दूध पीने को देता था। इस तरह से वह बढ़ई ऊंटनी और उनके बच्चों का व्यापार करते हुए सुखी रहने लगा । ऊंट के बच्चे नगर के पास वाले उपवन में चरने के लिए जाते थे तथा मन-भर कोमल लताएं खाकर और बड़े तालाब में पानी पीकर शाम के समय खेलते-कूदते घर आते थे। पहले वाला ऊंट का बच्चा अभिमान से उनके पीछे आकर मिल लेता था । इस पर ऊंट के बच्चों ने कहा , “अरे! यह बेवकूफ ऊंट हमारे दल से पीछे रहकर घंटा बजाता हुआ आता है। अगर कभी किसी दुष्ट जानवर के मुंह लग जायगा तो अवश्य उसकी मृत्यु हो जायगी।" ___ उस वन में घूमते-फिरते किसी सिंह ने घंटा बजना सुनकर देखा तो ऊंटनी के बच्चों का दल चला जा रहा था। उनमें से एक पीछे रहकर खेलतेकूदते और लताएं चरते ठहर गया। तब तक दूसरे ऊंट के बच्चे पानी पीकर अपने घर चले गए। उसने वन से निकलकर चारों ओर देखा फिर भी उसे रास्ते का पता नहीं चला। दल से अलग होकर धीरे-धीरे चिल्लाता हुआ जब वह कुछ दूर आगे बढ़ा तो उसी आवाज का पीछा करते हुए सिंह भी उस पर वार करने के लिए आ गया। जब वह ऊंट पास में आया तो सिंह ने झपट कर उसका गला पकड़ लिया और उसे मार डाला।