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________________ लब्धप्रणाश __ २५१ में दहाना लगाकर और पीठ पर चढ़कर तुझे दौड़ाऊं और तू घोड़े की तरह हिनहिनाए तो मैं खुश हो जाऊंगी।" राजा ने ऐसा ही किया । सबेरे सभा में बैठे हुए राजा के पास वररुचि आया। उसे देखकर राजा ने पूछा, "अरे वररुचि! किस पर्व में तुमने अपना सिर मुडाया?" उसने जवाब दिया "स्त्रियों के मांगने पर मनुष्य क्या नहीं देता और क्या नहीं करता? घोड़ा न होने पर भी वह घोड़े जैसा हिनहिनाता है। पर्व न होने पर भी वह सिर मुंडाता है। इसलिए अरे दुष्ट मगर! तू भी नन्द और वररुचि की तरह स्त्री के कहने में हो गया है । हे भद्र ! तूने आकर मुझे मारने का विचार किया, पर तेरी वकवाद के कारण वह भेद प्रकट हो गया । अथवा ठीक ही कहा है कि "मैना और सुग्गे अपनी बकवाद से ही बंधते हैं पर बगुले नहीं फंसते । इसलिए चुप रहने से ही सब काम ठीक हो जाता है।" अथवा कहा है कि "बाघ के चमड़े से ढका हुआ गघा छिपाया हुआ भयंकर रूप दिखलाते हुए रक्षा करने पर भी बात से ही मारा गया।" मगर बोला, “यह कैसे ?" बन्दर कहने लगा ......गधे और धोबी की कथा __ "किसी नगर में शुद्धपट नाम का एक धोबी रहता था। उसके पास एक ही गधा था । वह भी घास बिना बहुत ही कमजोर हो गया था। उस धोबी ने एक समय वन में घूमते हुए एक मरा बाघ देखा । उसे देखकर उसने सोचा, "यह बड़ा अच्छा हुआ। गधे को इस बाघ का चमड़ा पहनाकर रात में जौ के खेत में छोड़ दूंगा, जिससे इसे बाघ जानकर खेत के रखवाले बाहर न निकलेंगे।" उसके ऐसा करने के बाद गधा मनमानी तरह से जौ खाता था और सबेरे धोबी उसे अपने घर ले आता था। इस तरह कुछ समय बीतने पर वह मोटा-ताजा हो गया और उसे अस्तबल ले जाने
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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