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लब्धप्रणाश
२४६ "आज से जिंदगी भर के लिए मैंने अपना शरीर तुझे सौंप दिया है। यह जानकर तू हमारे साथ चल।" उसने कहा, "ठीक है।"
बाद में ब्राह्मण खाने का सामान लेकर आया और अपनी स्त्री के साथ खाने लगा। उसने कहा, "यह पंगु भूखा है, इसे भी थोड़े से कौर दे दे।" उसके ऐसा करने पर ब्राह्मणी ने कहा, “हे ब्राह्मण! तुम विना सहारे के हो! जब तुम दूसरे गांव को जाते हो तो मेरे साथ कोई बात भी करने वाला नहीं रहता। इसलिए इस पंगु को लेकर हमें चलना चाहिए।" उसने कहा, ''मैं अपने को तो संभाल ही नहीं सकता, फिर इस पंगु की कौन चलावे।" उसने कहा , “पेटी में रखकर मैं इसे ले चलूंगी।" उसकी बनावटी बातों से मोहित होकर ब्राह्मण ने भी यह बात मान ली। . .
इसके बाद एक दिन कुएं की जगत पर बैठे ब्राह्मण को उस पंगु को प्यार करने वाली स्त्री ने धक्का मारकर कुएं में गिरा दिया और उस पंगु को लेकर किसी नगर में घुसी। चोरी रोकने के लिए इधर-उधर घूमते हुए राजपुरुषों ने उसके सिर पर एक पेटी देखकर उसे जबरदस्ती छीनकर राजा के पास लाए। उन्होंने जब उसे खोला तो उसमें पंगु दिखलाई पड़ा। वह ब्राह्मणी भी रोती-कलपती राजपुरुषों के पीछे-पीछे वहां आई। राजा ने उससे पूछा कि “यह कैसी बात है?" वह बोली, 'यह मेरा वीमार पति है। इसके रिश्तेदार इसे दुःख देते थे, इसलिए इसके प्रेम से व्याकुल होकर मैं इसे अपने सिर पर चढ़ाकर आपके पास लाई हूं।" यह सुनकर राजा ने कहा कि "हे ब्राह्मणी ! तू मेरी बहन है। दो गांव लेकर अपने पति के साथ सुख भोगते हुए रह ।" ____ भाग्यवश किसी अच्छे आदमी ने ब्राह्मण को कुएं से बाहर निकाला
और वह घूमते-घूमते उसी शहर में आया। अपने पति को देखकर बदमाश स्त्री ने राजा को खबर दी, "हे राजन् । मेरे पति का दुश्मन आया है।" राजा ने उसको मारने की आज्ञा दी। ब्राह्मण बोला, “हे राजा! इस स्त्री ने मुझसे कुछ लिया है। अगर आप धर्मवत्सल राजा हैं तो उसे वापस दिलवाइए।" राजा ने कहा , “भद्रे! तूने जो उसके पास से लिया है उसे वापस दे दे।"