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पञ्चतन्त्र
लौटते हुए उसे एक सियार का बच्चा मिला । उसे बच्चा जानकर जतन से अपने दाढ़ों के बीच रखकर सिंह ने उसे जीता-जागता सिंहनी को दे दिया। इस पर सिंहिनी ने कहा, "हे कान्त! क्या तुम हमारे लिए भोजन लाए हो?" सिंह ने कहा, "आज मुझे सियार को छोड़कर और कोई जानवर नहीं मिला। मैंने उसे बच्चा जानकर नहीं मारा और फिर वह अपनी जाति का है। कहा भी है
“जान जाती हो तब भी स्त्री, संन्यासी, ब्राह्मण, बालक और विशेष
करके विश्वासी आदमी के ऊपर कभी वार नहीं करना चाहिए। इसलिए तू इसे खाकर अपना उपवास तोड़, सबेरे मैं और कुछ पैदा करूंगा।" उसने कहा, "हे कान्त ! तुमने इसे बच्चा जानकर नहीं मारा,फिर मैं कैसे इसे पेट के लिए मार सकती हूं ?
"जान जाने का मौका आ पड़ने पर भी कर्तव्य छोड़कर बुरा काम
नहीं करना चाहिए, यही सनातन धर्म है।
इसलिए यह मेरातीसरा बेटा होगा।" यह कहकर सिंहनी ने उसे अपना दूध पिला-पिलाकर मोटा-ताजा कर दिया। वे तीनों बच्चे भी बिना अपनी जाति जाने एक साथ खाते, पीते, घूमते अपना बचपन बिताने लगे। एक समय घूमता हुआ एक जंगली हाथी उस वन में आ गया। उसे देखकर सिंह के दोनों बच्चे क्रोधित होकर जब उसकी ओर चल पड़े तब सियार के बच्चे ने कहा, “अरे! यह हाथी तुम्हारे खानदान का दुश्मन है, इसलिए इसके सामने तुम्हें नहीं जाना चाहिए।" यह कहकर वह घर की ओर भागा। अपने बड़े भाई के भागने पर उन दोनों की हिम्मत भी टूट गई। अथवा ठीक ही कहा है--
"धीरज वाले और उत्साही एक ही पुरुष से सेना युद्ध में उत्साह दिखलाती है। अगर वह भागे तो सेना में भी भगदड़ पड़
जाती है। और भी "किसी वजह से महा बलवान, शूरवीर, धीरज धरने वाले और