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पञ्चतन्त्र
उसी समय वार करने को तैयार बैठे सिंह ने लम्बकर्ण को मार डाला । उसे मारने के बाद सियार को रखवाला बनाकर वह नदी में नहाने को चला गया। लालच और जल्दी के मारे सियार ने गधे का हृदय और कान खा लिए। इसके बाद नहा-धोकर और देवता की पूजा करके, पितरों को पानी देकर जब सिंह वहाँ आया तो उसने कान और हृदय के बिना गधे को देखा । यह देखकर सिंह गुस्से से जलते हुए बोला, “अरे पापी ! तूने यह अनुचित काम क्यों किया ? हृदय और कान खाकर तूने गधे को जूठा कर दिया है ।" सियार ने आजिजी से कहा, "स्वामी ! ऐसा मत कहिए। क्योंकि यह गधा बिना हृदय और कान का था, जिससे वह यहां आकर और आपको देखकर भी फिर दूसरी बार आया ।" इस तरह उसकी बात का विश्वास करके सिंह ने उसके साथ हिस्सा बँटाते हुए गधे को खा लिया ।
इसलिए मैं कहता हूं कि "वह आया और सिंह का पराक्रम देखकर पीछे भागा, पर बिना कान और हृदय का मूर्ख था जो भागकर फिर आया ।
इसलिए अरे मूर्ख ! तूने कपट किया है, पर युधिष्ठिर की तरह सच्ची बात कहकर उसे खोल दिया है । अथवा ठीक ही कहा है कि
"अपना स्वार्थ छोड़कर जो कमअक्ल और दम्भी आदमी सच बोलता है, वह दूसरे युधिष्ठिर की तरह अपने स्वार्थ से गिर जाता है ।" मगर ने कहा, "यह कैसे ? " बन्दर कहने लगा
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युधिष्ठिर कुम्हार की कथा
" किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक समय नशे में जोर से दौड़ते हुए वह घड़े के टूटे धारदार खपड़े पर गिर पड़ा । खपड़े की ठोकर से उसका सिर फूट गया और लोहू-लुहान होकर वह मुश्किल से उठकर अपने घर वापस आया । बाद में अपथ्य करने से उसका घाव बिगड़ गया और बहुत मुश्किल से अच्छा हुआ ।
एक समय जब देश में अकाल पड़ रहा था, वह कुम्हार भूख-प्यास से