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पञ्चतन्त्र
हो सकता है ?" सियार ने कहा, "मामा! अगर यही बात है तो फिर उस खूबसूरत जगह चलो जहां नदी है और पन्ने की तरह घास है । वहां पहुंचकर मेरे साथ बातचीत का आनन्द लेते हुए रहना ।” लम्बकर्ण ने कहा, "अरे भांजे ! तूने ठीक कहा, पर हम देहाती हैं और जंगली जानवर हमें मारते हैं । फिर उस सुन्दर जगह से क्या फायदा ?” सियार ने कहा, "मामा ! ऐसा मत कहो, वह देश मेरे बाहुओं से रक्षित है । किसी दूसरे का वहां प्रवेश नहीं है | धोबियों से सताई हुई वहां तीन गधियां हैं । मोटी - ताजी और जवान होकर उन्होंने मुझसे यह कहा है अगर मैं उनका सच्चा मामा हूँ तो किसी गांव में जाकर उनके लायक पति ढूंढ लाऊं । इसीलिए मैं तुम्हें वहां ले जा रहा हूं।" सियार की यह बातें सुनकर कामातुर गधे ने उससे कहा, “ भद्र, अगर यही बात है तो आगे चल, मैं तेरे पीछे चलूंगा ।" अथवा यह ठीक ही कहा है कि
"मनोहर शरीरवाली एक स्त्री छोड़कर कोई चीज विष और अमृत नहीं रह जाती । उसके प्रसंग से जीवन मिलता है और उसके वियोग से मृत्यु |
और भी
“जिसके संग और दर्शन बिना भी केवल उसका नाम सुनने से ही काम उत्पन्न होता है उस स्त्री से आँख लड़ने पर जो न पिघले तो यह आश्चर्य की ही बात है ।"
इस तरह वह चलकर सियार के साथ सिंह के पास पहुँच गया । पीड़ित सिंह भी उसे देखकर जैसे उठने को हुआ वैसे ही गधा भागने लगा । उसे भागते हुए देखकर सिंह ने पंजा मारा, पर अभागे की कोशिश की तरह उसका वार व्यर्थ गया ।
ऐसे समय गुस्सा होकर सियार ने सिंह से कहा, "यह तुम्हारा वार कैसा कि एक गधा भी तुम्हारे सामने से भाग गया, फिर तुम कैसे हाथी से लड़ोगे? मैंने तुम्हारी ताकत देख ली ।" शरमीली हँसी से सिंह ने कहा, "अरे! मैं क्या करूं? मैं मारने के लिए तैयार नहीं था, नहीं तो हाथी भी मेरा वार