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पञ्चतन्त्र
भौजाई उत्कंठा से तेरा रास्ता देख रही होगी ।" बन्दर ने कहा, "अरे दुष्ट ! अरे दुष्ट ! भाग जा । मैं नहीं जाता । कहा है कि
"भूखा कौनसा पाप नहीं करता, क्षीण मनुष्य निर्दयी हो जाते हैं । भद्रे ! प्रियदर्शन से कहो कि गंगदत्त पुनः कुएँ में नहीं आयगा ।" मगर ने कहा, "यह कैसे ?” उसने कहा
मेढकों के राजा और साँप की कथा
किसी कुएँ में गंगदत्त नाम का मेड़कों का राजा रहता था । एक समय वह रिश्तेदारों से तंग आकर रंहट की घड़ी पर चढ़कर बाहर निकल आया । वह सोचने लगा, “किस तरह मैं उन रिश्तेदारों को नुक्सान पहुँचाऊं ? कहा भी है
" आपत्ति में जिसने अपकार किया हो, और तकलीफ में जिसने हँसी की हो, उन दोनों को नुक्सान पहुँचाने वाले पुरुष का मैं फिर से जन्म मानूंगा ।"
इस तरह सोचते हुए उसने बांबी में घुसते हुए एक काले सांप को देखा । उसे देखकर उसने फिर सोचा, “ इसे उस कूएँ में ले जाकर में सब रिश्तेदारों को मरवा डालूंगा । कहा भी है
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" अपना काम साधने के लिए शत्रु के सामने शत्रु को और जोरदार के सामने जोरदार को भिड़ाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने में दुश्मन को मारने में कोई तकलीफ न होगी । उसी तरह -
“कांटे से जिस तरह कांटा निकाला जाता है, बुद्धिमान को उसी तरह दुःख देने वाले तीखे शत्रु को तीखे शत्रु द्वारा सुख के लिए निर्मूल करना चाहिए ।
"
ऐसा विचार करके उसने बांबी के द्वार पर जाकर उसे पुकारा, "आओ प्रियदर्शन ! आओ ! " यह सुनकर सर्प ने सोचा, “जो मुझे ऐसे पुकारता है, वह अपनी जाति का नहीं हो सकता और यह सर्प की आवाज