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लब्धप्रणाश
रखकर बड़े गुस्से में भरी उससे दीनतापूर्वक कहने लगा-
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"तेरे पैर पड़कर दासता स्वीकार कर लेने पर भी हे प्राणप्रिये, गुस्सेखोर, तू किसलिए गुस्सा करती है ?"
उसने भी उसकी बातें सुनकर आँसू भरी आँखों से कहा “हे धूर्त ! नकली भावों से सुन्दर बनी हुई वह स्त्री सैकड़ों मनोरथों के साथ तेरे हृदय में बसती है, मेरे लिए वहाँ कोई जगह नहीं है । फिर पैरों में पड़कर तू मेरी हँसी क्यों उड़ाता है ?
फिर वह तेरी प्राणप्यारी नहीं है तो मेरे कहने पर भी तू क्यों उसे नहीं मारता । अगर वह बन्दर है तो तेरे साथ उसका इतना स्नेह किसलिए ? अधिक क्या कहूं, अगर उसका जिगर नहीं मिला तो मैं आमरण उपवास करूंगी, यह तू जान लेना ।" इस तरह उसका निश्चय जानकर चिंतित हृदय से मगर ने कहा, "यह ठीक ही कहा है
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" सरेस का, मूर्ख का, स्त्रियों का, केकड़े का, मछलियों का, नील का और शराब पीने वाले का एक ही ग्रह होता है, अर्थात् जिनसे वे चिपटते हैं उनसे अलग नहीं होते ।
इसलिए मैं क्या करूं? मैं उसको कैसे मार सकता हूं ?" इस तरह सोचते-विचारते वह बन्दर के पास गया । बन्दर भी उसे देर से आया देखकर घबराते हुए बोला, “मित्र, तू देर करके क्यों आया है ? किसलिए खुशी-खुशी बात नहीं करता, न सुभाषित ही पढ़ता है ? " उसने कहा, “तेरी भौजाई ने मुझसे ये कठोर बातें कही हैं, ' अरे कृतघ्न ! तू मुझे अपना मुंह मत दिखला, क्योंकि तू रोज अपने मित्र के मत्थे खाता है, पर अपना घर दिखलाकर भी उसके उपकार का बदला नहीं देता । तेरे ऐसों के लिए कोई प्रायश्चित्त नहीं है । कहा है कि
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"ब्रह्महत्या करने वाले, शराब पीने वाले, चोरी करने वाले तथा व्रत भंग करने वाले के लिए सत्पुरुषों ने प्रायश्चित्त कहा है, पर कृतघ्न के लिए प्रायश्चित्त नहीं है ।
इसलिए तू मेरे देवर को बदला चुकाने के लिए घर ला, नहीं तो तेरे