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पञ्चतन्त्र स्वार्थ साधता है। स्वार्थ छोड़ना मूर्खता है। बुद्धिमान समय पर दुश्मन को कन्धे पर चढ़ाता है । बड़े काले साँप ने बहुत से
मेढकों को मार डाला।" मेघवर्ण ने कहा, "यह कैसे ?" स्थिरजीवी कहने लगा
मेढक और काले सांप की कथा "वरुण पर्वत के पास एक देश में मन्दविष नाम का एक बूढ़ा साँप रहता था। एक बार उसने अपने मन में सोचा कि 'मुझे कैसे सुख से अपनी जीविका चलानी चाहिए। इसके बाद उसने बहुत से मेढकों से भरे हुए तालाब में जाकर अपने को वीतराग जैसा दिखलाया । उसे ऐसे खड़े देख कर पानी से निकलकर एक मेढक ने पूछा, “मामा ! आज तुम पहले जैसे भोजन की खोज में क्यों नहीं घूमते ?" उसने कहा , “भद्र! मेरे ऐसे मन्दभाग्य को भोजन की इच्छा कैसी ? आज रात में भोजन की खोज में घूमते हुए मैंने एक मेढक को देखा और उसे पकड़ने की तैयारी की । वह भी मुझे. देखकर मृत्यु के डर से पढ़ने में लगे हुए ब्राह्मणों के बीच में घुस गया और मुझे पता नहीं लगा कि वह कहां गया। उसके लोभ से व्याकुल मैंने तालाब के किनारे जल में खड़े किसी ब्राह्मण के लड़के का अंगूठा डस लिया और वह तुरन्त मर गया। इस पर उसके पिता ने मुझे श्राप दिया , 'अरे दुरात्मा, तूने बिना कसूर के मेरे पुत्र को डसा है, इस दोष से तू मेढकों की सवारी बनेगा और उनकी कृपा से तेरी जीविका चलेगी।' इसलिए मैं तुम सबकी सवारी बनने के लिए आया हूँ।"
उस मेढक ने दूसरे मेढकों से यह बात कह दी । उन सबों ने खुशीखुशी जाकर जलपाद नामक मेढकों के राजा को यह खबर कर दी । मंत्रियों से घिरा हुआ वह भी इस बात को आश्चर्यमयी घटना मानकर जल्दी से. तालाब से निकलकर मन्दविष सर्प के फन पर चढ़ गया। बाकी भी उमर के अनुसार उसकी पीठ पर सवार हो लिए। बहुत कहने से क्या, जिन्होंने. उसके ऊपर जगह नहीं पाई वे उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे। मन्दविष