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काकोलूकीय
२२१ ___घोंसला बनाने के बहाने किले के फाटक पर लकड़ियों का ढेर इकट्ठा हो जाने पर सूरज उगने के साथ ही उल्लुओं के अंधे हो जाने पर स्थिरजीवी ने जल्दी से मेघवर्ण के पास जाकर कहा, "स्वामी ! मैंने दुश्मन की गुफा जलाने लायक बना दी है ; आप अपने परिवार को इकट्ठा करके एक-एक जलती वन की लकड़ी लेकर गुफा के फाटक पर उस घोंसले में डालिए जिससे सब शत्रु कुम्भीपाक नरक के समान दुःख से मरें।" यह सुनकर खुशी से मेघवर्ण ने कहा, "तात, अपना हाल कहिए। बहुत दिनों के बाद आप दिखलाई दिए।" उसने कहा, "वत्स! यह बातचीत का समय नहीं है; क्योंकि अगर दुश्मन का कोई भेदिया मेरे आने की खबर उसे दे देगा तो हमारा भेद जानकर वह अंधा कहीं दूसरी जगह चला जायगा,इसलिए जल्दी करो। कहा भी है--
"जल्दी से करने लायक काम में जो आदमी देर करता है उसके उस
काम में गुस्से से देवता विघ्न डालते हैं। और भी "जो-जो फलदायक काम जल्दी से नहीं किए जाते, उनके उस काम
का रस काल पी जाता है। सब शत्रुओं को मारकर जब तुम वापस आओगे तब विस्तार के साथ बिना घबराहट के मैं सब हाल कहूंगा।"
___ उसकी बात सुनकर परिजनों सहित मेघवर्ण ने एक-एक जलती हुई लकड़ी का टुकड़ा अपनी चोंच में लेकर गुफा के दरवाजे पर आकर स्थिरजीवी की कुलाय में डाला। इसके बाद दिन के अंधे उल्लू रक्ताक्ष की बात याद करते हुए फाटक के रुकने से बाहर निकलने में असमर्थ होकर गुहा में कुम्भीपाक नरक का दुःख भोगते हुए मर गए। इस तरह शत्रुओं को मिटा कर मेघवर्ण ने फिर उस बरगद रूपी किले पर जाकर वहां सिंहासन पर बैठकर सभा के बीच खुशी-खुशी स्थिरजीवी से पूछा , “तात! दुश्मनों के बीच रहकर तुमने इतना समय कैसे बिताया ? इस बारे में हमारा कौतुक है, इसलिए कहो । क्योंकि