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काकोलूकीय राजा और मंत्री; हम सब मूर्ख मंडल के सदस्य हैं।" __दैव के प्रतिकूल होने से फिर भी वे सब रक्ताक्ष की बातें न मानकर खूब मांस और दूसरे खानों से स्थिरजीवी को पोसते रहे । इस पर रक्ताक्ष ने अपने दल वालों को बुलाकर एकांत में कहा, "अरे! अभी तक तो हमारे राजा और किले की कुशल है। मैंने पुश्तैनी मंत्री के नाते उसे समझाया भी । अब हम सब दूसरे पर्वत-दुर्ग की शरण लेंगे । कहा भी है -
"जो पहले ही अनागत काम करता है वह शोभा पाता है , जो ऐसा नहीं करता है उसे सोचना पड़ता है ; इस वन में रहते हुए बूढ़े होकर भी मैंने बिल की बात कभी नहीं सुनी ।" उन्होंने पूछा, “यह कैसे ?" रक्ताक्ष ने कहा --
-- सिंह, सियार और गुफा की कथा . ___"किसी वन-प्रदेश में खरनखर नाम का एक सिंह रहता था । एक समय भूख से व्याकुल इधर -उधर भटकते हुए उसे कोई भी जानवर नहीं मिला । सूर्यास्त के बाद वह एक बड़ी गुफा के पास आ पहुँचा
और उसमें घुसकर सोचने लगा ,“जरूर ही इस गुफा में रात को कोई जानवर आयगा, इसलिए मैं चुपचाप बैठू।" इतने में उस गुफा का मालिक दधिपुच्छ नामक सियार आ निकला। उसने देखा तो उसे पता लगा कि सिंह के पैरों के निशान गुफा के भीतर गए थे, बाहर नहीं निकले। इस पर उसने सोचा, “अरे, मेरी मौत आ गई। जरूर इस गुफा के भीतर सिंह है, मैं अब क्या करूं ? इसका कैसे पता लगाऊं?" यह सोचकर दरवाजे पर खड़े होकर उसने फुफकारना शुरू किया, “अरे बिल! अरे विल!" यह कहकर चुप रहने के बाद फिर उसने कहा ,“अरे क्या तुझे याद नहीं है कि मैंने तेरे साथ संकेत किया था कि जब मैं बाहर से आऊंतो तुम्हें मुझे बुलाना होगा,
और मुझे तुझे । इसलिए अगर तू मुझे नहीं बुलावेगी तो मैं दूसरी गुफा में चला जाऊंगा।" यह यह सुनकर सिंह ने सोचा, “अवश्य ही यह गुफा सदा आने वाले को बुलाती होगी, पर आज मेरे डर से कुछ बोलती नहीं।" अथवा,