SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काकोलूकीय वहां भुखमरी, मृत्यु और भय ये तीन बढ़ते हैं ।" और भी २११ ''सामने पाप करने पर भी मूर्ख साम से शांत हो जाता है ; रथकार ने अपनी पत्नी को उसके जार के साथ अपने सिर चढ़ाया । " मंत्रियों ने कहा, "वह कैसे ?" रक्ताक्ष ने कहा रथकार की स्त्री और उसके जार की कथा "किसी नगर में वीरधर नामक रथकार रहता था । उसकी स्त्री का नाम कामदमनी था । उस छिनाल की लोग निंदा करते थे । रथकार ने भी उसकी परीक्षा लेने के लिए सोचा, “मुझे इसकी परीक्षा करनी चाहिए । कहा भी है "यदि आग ठंडी हो जाय, चन्द्रमा गरम हो जाय, और दुर्जन से हित हो जाय, तभी स्त्रियों का सतीत्व हो सकता है । मैं लोगों में उड़ती खबर से जानता हूं कि वह छिनाल है । कहा भी है “जो वेदों और शास्त्रों में न देखा गया है और न सुना गया है वह सब जो कुछ भी इस ब्रह्मांड के बीच है उसे साधारण जन जानते हैं ।" ग्रह सोचकर उसने अपनी स्त्री से कहा, “प्रिये ! सबेरे मैं इस गांव से बाहर जाऊंगा । वहां मुझे कुछ दिन लगेंगे, इसलिए तुम मेरे लिए मार्ग में खाने लायक कुछ सामान बना दो । उसकी बात सुनकर उसने खुशी और उत्सुकता से सब काम छोड़कर घी और शक्कर से पकवान तैयार कर दिया । अथवा ठीक ही कहा है "बादल से घिरे बरसात के दिन में, गहरे अंधेरे में, पति के विदेश जाने पर, भयंकर वन इत्यादि में छिनाल स्त्री को बड़ा सुख मिलता है ।" वह तड़के जाग कर अपने घर से निकल गया । उसे गया जानकर उसने भी हँसते हुए तथा सिंगार-विहार करते हुए किसी तरह दिन बिताया ।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy