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________________ काकोलकीय २०७ अछूतों के कुएं की तरह स्त्रियां उसे दूर से ही छोड़करचली जाती हैं। और भी"सिकुड़ा हुआ शरीर, कांपती हुई चाल, गिरे हुए दांत, धूमती हुई निगाह, नष्ट हो गया रूप, मुंह से बहती लार, रिश्तेदार बात नहीं करते, पत्नी सेवा नहीं करती। बूढ़े आदमी को धिक्कार है जिसकी बात लड़का भी नहीं मानता। एक समय जव एक ही खाट पर वह मुंह घुमा कर लेटी थी उतने में ही घर में एक चोर घुसा। वह चोर को देख कर भय से अपने बूढ़े पति से चिपट गई। वह भी विस्मय से रोमांचित होकर सोचने लगा, 'अरे, इसने मुझे कैसे भेंट लिया!' अच्छी तरह देखने के बाद घर के एक कोने में चोर को देखकर उसने सोचा, 'अवश्य इसी के भय से उसने मेरा आलिंगन किया है।' यह जान कर उसने चोर से कहा " इसे नहीं मारना चाहिये। जो मुझे रोज तंग करती थी, वह आज मुझे भेटती है। हे प्रियकारक ! तू बहुत अच्छा है, जो कुछ मेरा है, उसे चुरा ले।" उसे सुनकर चोर ने कहा“जो कुछ चोरी करना है उसे मैं नहीं देखता। अगर कोई चोरी करने लायक चीज होगी तो मैं फिर आऊंगा, यदि तेरी स्त्री तुझे आलिंगन न करे।" इसलिए उपकारी चोर का भी भला चाहते हैं, फिर शरणागत की बात ही क्या? उनसे सताये जाकर यह हमें मजबूत बनायेगा और उनके दोष दिखायेगा। अनेक वजहों से यह मारने काबिल नहीं है। यह सुनकर अरिमर्दन ने वक्रनाश मंत्री से पूछा, “भद्र ! ऐसी हालत में क्या करना चाहिए ?" उसने कहा, “देव ! यह अवध्य है, क्योंकि “आपस में झगड़ते दुश्मन हितू हो जाते हैं, जैसे चोर और राक्षस (की लड़ाई ) से बछड़े के जोड़े की जान बच गईं।"
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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