________________
मित्र-संप्राप्ति
દ
से उसके यहां सूरज डूबने पर पहुंचा।
बाद में हठ से गुप्तधन के तिरस्कार करने पर भी वह उसके घर में घुस कर बैठ गया। फिर खाने के समय अनादर के साथ उसे कुछ खाने को दे दिया गया। खाने के बाद सोते-सोते आधी रात को उसने देखा कि वही दोनों पुरुष आपस में सलाह कर रहे थे। इनमें से एक ने कहा,"हे कर्ता ! गुप्तधन के लिए तूने क्यों फिजूल इस खर्च की व्यवस्था की कि जिसमें उससे सोमिलक को भोजन दिया ? यह तूने ठीक नहीं किया।"दूसरे ने जवाब दिया,"हे कर्म ! इसमें मेरा दोष नहीं, मुझे तो मनुष्य का फायदा कराना ही चाहिए, पर उसका परिणाम तेरे ही अधीन है।" ____ सबेरे जब सोमिलक उठा उस समय दस्त से पीड़ित गुप्तधन बीमार पड़ गया। बीमारी की वजह से उसने दूसरे दिन फाका किया । सोमिलक भी सबेरे उसके घरसे निकलकर उपभुक्तधन के यहां गया। उसने सामने आकर सोमिलक का सत्कार किया तथा भोजन वस्त्रादि से उसका सम्मान किया। बाद में उसी घर में सोमिलक अच्छी खाट पर सो गया। आधी रात को उसने उन्हीं दोनों आदमियों को बातचीत करते हुए सुना। इनमें से एक ने कहा, “सोमिलक की खातिरी में इस उपभुक्तधन ने बहुत खर्च किया है । अब तू बता उसका उद्धार कैसे होगा ? यह सब कुछ तो वह उस बनिए के घर से उधार पर लाया है। दूसरे ने कहा , “यह तो मेरा काम है, पर इसका परिणाम तेरे अधीन है।" सबेरे एक राजपुरुष ने राजा का इनाम लाकर उपभुक्तधन को दिया। उसे देखकर सोमिलक सोचने लगा, धन न होने पर भी उपभुक्तधन गुप्तधन से कहीं अच्छा है । कहा है कि
"अग्निहोत्र वेद का फल है, शील और सदाचार शास्त्र के फल हैं , रति और पुत्र स्त्री के फल हैं तथा दान और भोग धन
के फल हैं।" इसलिए तुम मुझे उपभुक्तधन बनाओ । मुझे गुप्तधन बनना नहीं है।" बाद में सोमिलक धन का दान और उपभोग करने वाला हुआ।