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पञ्चतन्त्र
___ कर्म के साथ उसके उपभोग का तो कहना ही क्या ? और भी
"शाण्डिली की माता बिना छंटे तिल एकाएक नहीं बेचती, इसमें कोई कारण जरूर होना चाहिए।" तामूचूड़ ने कहा , “यह कैसे ?" वह कहने लगा -- शाण्डिली द्वारा तिल-चूर्ण बेचने की कथा
"किसी स्थान में बरसात में व्रत करने के लिए किसी ब्राह्मण से मैंने रहने के लिए प्रार्थना की। मेरी बात मानकर उस ब्राह्मण ने मेरी सेवा की और देवता की पूजा करता हुआ मैं सुखपूर्वक रहने लगा। एक दिन सबेरे जागकर मैं ध्यानपूर्वक ब्राह्मण और ब्राह्मणी का संवाद सुनने लगा। ब्राह्मण ने कहा, "ब्राह्मणी, सबेरे अनन्त दान का फल देने वाली दक्षिणायन संक्रांति पड़ेगी। मैं भी दान के लिए दूसरे गांव में जाऊंगा। तू भी भगवान सूर्य देव के निमित्त किसी ब्राह्मण को कुछ भोजन दे देना।" यह सुनकर ब्राह्मणी ने उसे कठोर वचनों से धिक्कारते हुए कहा , “तुझ दरिद्र को भोजन कहां से मिलेगा ? ऐसा कहते हुए तुझे लाज भी नहीं आती? और तेरे हाथ पकड़ने के बाद मैंने कभी सुख नहीं पाया । न तो मिठाइयों का स्वाद ही चखा, न हाथ-पैर और गले के आभूषण ही मुझे मिले।" यह सुनकर डरा हुआ ब्राह्मण बोला, "ब्राह्मणी, तुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए। कहा है--
"एक कौर में से आधा कौर मांगने बालों को क्यों न दिया जाय ? इच्छानुसार धन तो किसे कहां मिलने वाला है ? "धनवान प्राणी बहुत धन दान देने से जो फल प्राप्त करता है, वह गरीब आदमी एक कौड़ी देकर भी प्राप्त करता है, ऐसा हमने सुना है । "देने वाला छोटा भी सेवा करने लायक है, कंजूस बड़ा रईस हो तो भी सेवा लायक नहीं है । मीठे पानी से भरा हुआ कुंआ लोगों