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पञ्चतंत्र
"अजात , मृत और मूर्ख पुत्रों में मृत और अजात पुत्र अच्छे हैं ; क्योंकि पहले दो तो थोड़ा ही दुख देते हैं, पर मूर्ख पुत्र तो जीवन-पर्यन्त जलाता रहता है। "गर्भ गिर जाना अच्छा है , ऋतु-काल में स्त्री-समागम न करना ठीक है , मरी संतान पैदा होना भी ठीक है, कन्या होना भी श्रेयस्कर है , स्त्री का बन्ध्या होना भी ठीक है और सन्तान गर्भ में ही पड़ी रहे, यह भी ठीक है, पर धनवान, रूपवान और गुणवान होते हुए भी मूर्ख पुत्र हो, यह ठीक नहीं। "उस गाय का क्या किया जाय जो न बच्चा देती हो न दूध;
उस पुत्र के पैदा होने का क्या अर्थ है जो न विद्वान है न भक्त ? "इस संसार में कुलीन पुत्र की मूर्खता की अपेक्षा उसकी मृत्यु भली है, जिसकी वजह से विद्वानों के बीच में मनुष्य को उससे जारज सन्तान की तरह लज्जा करनी पड़े। "गुणियों की पाँत की गिनती के आरम्भ में जिसके नाम पर खड़िया एकाएक न चले उससे यदि माता पुत्रवती कहलाए तो
कहो बांझ कैसी होती है ? इसलिए इनकी जैसे बुद्धि खुले ऐसा कोई उपाय आप कीजिए। यहां पर मुझसे वृत्ति भोगने वाले पाँच सौ पंडितों की मंडली बैठी है , इसलिए जिससे मेरी मनोकामनाएं सिद्ध हों, वैसा कीजिए।" __एक पंडित बोले ,“देव ! व्याकरण का अध्ययन बारह वर्ष तक चलता है । इसके बाद मनु आदि के धर्मशास्त्र, चाणक्य इत्यादि के अर्थशास्त्र और वात्स्यायन इत्यादि के काम-शास्त्र का अध्ययन होता है। इस तरह धर्म, अर्थ और काम-शास्त्र का ज्ञान होता है। इस तरह बुद्धि जागती है।" इतने में उनके बीच से सुमति नाम का एक मंत्री बोला, “यह जीवन नाशवान् है, शब्द-शास्त्र बहुत दिनों में सीखे जाते हैं, इसलिए राजकुमारों की शिक्षा के लिए किसी छोटे शास्त्र का विचार करना चाहिए। कहा भी है--
"शब्द-शास्त्र अनन्त है, आयुष्य थोड़ी है और विघ्न अनेक हैं,