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मित्र-संप्राप्ति
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"यम के पाश में बंधे हुए और दैव ने जिनका चित्त कुंठित कर दिया है ऐसे महापुरुषों की भी बुद्धि अधिकतर कमजोर पड़ जाती है ।"
इसके बाद बहेलिया उन्हें फंसा जानकर खुश मन से अपनी लाठी उठाकर उन्हें मारने दौड़ा । चित्रग्रीव भी परिवारसहित अपने को फंसा पाकर तथा बहेलिए को आते देखकर कबूतरों से कहने लगा, “ अरे ! तुम्हें डरना नहीं चाहिए। कहा है कि
“दुःखों में जिसकी बुद्धि मन्द नहीं पड़ती वह उस बुद्धि के प्रभाव से बेशक उन दुःखों से पार पा जाता है ।
" संपत्ति और विपत्ति दोनों में बड़े लोग एक-से रहते हैं । सूर्य उगने और डूबने के समय लाल रहता है ।
इसलिए हम सब फंदों के सहित जाल साथ खेल ही में उड़कर उसकी नजरों के बाहर जाकर स्वतंत्र हो जायं । ऐसा न करके डरकर जल्दी से न उड़ने पर तुम सब मारे जाओगे । कहा भी है
“सूत बारीक होने पर भी अगर एकसां लंबे और मोटे हों तो वे अधिक बल को भी संभाल सकते हैं; यह उपमा सत्पुरुषों पर भी लागू होती है ।" उन्होंने यही किया और जाल जमीन पर खड़ा बहेलिया दौड़ा।
पढ़ा
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लेकर उन उड़ते हुए कबूतरों के पीछे फिर सिर ऊंचा करके एक श्लोक
"ये पक्षी एका करके मेरा जाल लेकर उड़े जा रहे हैं, पर जब वे आपस में लड़ेंगे तो इसमें शक नहीं कि वे नीचे आ पड़ेंगे ।" लघुपतनक भी चारा इकट्ठा करना छोड़कर 'अब क्या होगा ?' इस कुतूहल से उनके पीछे लग गया । उन्हें आंख से ओझल होते देखकर बहेलिया भी निराश होकर यह श्लोक पढ़ता हुआ लौट गया
" जो नहीं होना होता वह नहीं होता, और जो होना होता है वह होकर ही रहता है, भवितव्यताहीन वस्तु हाथ में आने