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मित्र-मंद
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उसी प्रकार 'पहले जहां बहुत दिनों तक अभिमानपूर्वक विलास किया हो वहीं अगर मनुष्य गिड़गिड़ाये तो दूसरों के सामने वह निन्दनीय गिना जाता है।"
उसके घर में पुश्तैनी लोहे से गढ़ी एक तराजू थी। उसे किसी सेठ के घर जमा करके वह देसावर चला गया। बहुत दिनों तक मनमाने तौर से विदेशों में घूमकर वह फिर अपने शहर में लौट आया और सेठ से जाकर कहा, “अरे सेठ ! हमारी जमा की हुई तराजू तो दे दो।" सेठ ने कहा, "अरे, वह नहीं है । तेरी तराजू तो मूसे खा गए।" जीर्णधन ने कहा, 'सेठ, तुम्हारा इसमें कोई दोष नहीं है, अगर उसे मूसे खा गए । संसार ऐसा ही है इसमें कोई चीज हमेशा नहीं रहती । पर मैं नदी में नहाने जा रहा हूं, इसलिए तुम अपने धनदेव नाम के लड़के को नहाने का सामान देकर मेरे साथ कर दो ।"
सेठ ने भी अपने चोरी के भय से शंकित होकर अपने लड़के से कहा, "वत्स ! ये तुम्हारे चाचा हैं । नहाने के लिए नदी पर जा रहे हैं, इसलिए तुम इनके साथ नहाने का सामान लेकर जाओ।"अहो,यह ठीक ही कहा है कि
"भय, लोभ अथवा अन्य किसी कारण के बिना कोई आदमी केवल
भक्ति से ही किसी दूसरे का भला नहीं करता । और भी "बिना काम अथवा कारण के अगर किसी की कहीं बड़ी आवभगत हो तो वहां शक करना चाहिए। ऐसी शंका का परिणाम
सुखदायक होता है।" खुशी-खुशी उस सेठ का लड़का नहाने का सामान लेकर अतिथि के साथ चला । इसके बाद जीर्णधन बनिये ने स्नान करके उस लड़के को नदी किनारे की एक गुफा में छिपा दिया और उसका दरवाजा एक बड़े पत्थर से ढांक कर जल्दीसे घर लौट आया। इस पर पहले बनिये ने उससे पूछा, "हे अतिथि ! मेरा पुत्र तुम्हारे साथ नदी पर गया था, वह कहां है ?" उसने