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पञ्चतन्त्र बकबक बन्द न करने पर , आग न जलने से खिसियाते हुए एक बन्दर ने उसके दोनों पंख पकड़कर उसे पत्थर के ऊपर पटक दिया जिससे वह मर गया। इससे मैं कहता हूं कि न झुकने वाली लकड़ी झुकती नहीं , पत्थर से छुरे का काम नहीं लिया जा सकता। इस बारे में तू सूचीमुख पक्षी का विचार कर। जो उपदेश लायक नहीं , उसे उपदेश नहीं देना चाहिए ।
"मूर्ख को उपदेश देने से वह शांति का नहीं, वरन् कोप का कारण
हो जाता है , सों को दूध पिलाने से केवल उनका विष ही बंढ़ता है ।
और भी "ऐरे-गैरों को उपदेश नहीं देना चाहिए , देखो मूर्ख बन्दर ने अच्छे
घरवाले को बेघरवाला बना दिया।" दमनक ने कहा , “यह कैसे ?" करटक कहने लगा--
गौरय्या और बन्दर की कथा किसी एक जंगल में शमी वृक्ष की एक डाल पर घोंसला बनाकर गौरय्ये का एक जोड़ा रहता था। एक बार वह सुखपूर्वक बैठा था कि इतने में हेमन्त ऋतु का बादल धीरे-धीरे बरसने लगा। उसी समय हवा और पानी के झपेड़ों से दुखी शरीर वाला , अपने दांतों की वीणा बजाता हुआ तथा कांपता हुआ एक बन्दर उस शमी वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया । उसको इस अवस्था में देखकर गौरय्या बोली, "हाथ पैर वाला तू आदमी की शकल जैसा दिखलाई पड़ने पर भी ठंड से दुखी है। अरे मूर्ख ! तू घर क्यों नहीं बनाता?"
यह सुनकर बन्दर गुस्से से बोला , "तू चुप क्यों नहीं रहती ? अरे ! इस गौरय्ये की धृष्टता तो देखो , यह मेरी हंसी उड़ा रही है ?
"दुराचारिणी और पंडितों जैसी बात करने वाली रांड सूचीमुखी इस प्रकार बकवाद करती हुई डरती नहीं ? इसलिए मैं इसे क्यों न मारूं?"