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द्वादशानुप्रेक्षा
बारसणुपेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा)
मंगलाचरण और प्रतिज्ञावाक्य या णमिऊण सव्वसिद्धे, झाणुत्तमखविददीहसंसारे।
दस दस दो दो व जिणे, दस दो अणुपेहणं वोच्छे ।।१।। जिन्होंने उत्तम ध्यानके द्वारा दीर्घ संसारका नाश कर दिया है ऐसे समस्त सिद्धों तथा चौबीस तीर्थंकरोंको नमस्कार कर बारह अनुप्रेक्षाओंको कहूँगा।।१।।
म बारह अनुप्रेक्षाओंके नाम अद्भुवमसरणमेगत्तमण्णसंसारलोगमसुचित्तं।
आसवसंवरणिज्जर, धम्मं बोहिं च चिंतेज्जो।२।। अध्रुव, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म और बोधि इन बारह अनुप्रेक्षाओंका चिंतन करना चाहिए।।२।।
अध्रुव अनुप्रेक्षा वरभवणजाणवाहणसयणासणदेवमणुवरायाणं।
मादुपिदुसजणभिच्चसंबंधिणो य पिदिवियाणिच्चा।।३।। उत्तम भवन, यान, वाहन, शयन, आसन, देव, मनुष्य, राजा, माता, पिता, कुटुंबी और सेवक आदि सभी अनित्य तथा पृथक् हों जानेवाले हैं।।३।।
सामग्गिंदियरूवं, आरोग्गं जोव्वणं बलं तेज।
सोहग्गं लावण्णं, सुरधणुमिव सस्सयं ण हवे।।४।। सब प्रकारकी सामग्री -- परिग्रह, इंद्रियाँ, रूप, नीरोगिता, यौवन, बल, तेज, सौभाग्य और सौंदर्य ये सब इंद्रधनुष्यके समान -- शाश्वत रहनेवाले नहीं हैं अर्थात् नश्वर है।।४।।
जलबुब्बुदसक्कधणुखणरुचिघणसोहमिव थिरं ण हवे।
अहमिंदट्ठाणाहिं, बलदेवप्पहुदिपज्जाया।।५।। अहमिंद्रके पद और बलदेव आदिकी पर्यायें जलके बबूले, इंद्रधनुष्य, बिजली और मेघकी शोभाके समान -- स्थिर रहनेवाली नहीं हैं।।५।।