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चाणक्यसूत्राणि
कण्टकों का मुखमर्दन करनेके लिये प्रत्येक समय सतर्क और सन्नद्ध रहना पढता है । उसे किसी भी दण्डनीय व्यक्ति के मिथ्याविनयसे प्रभावित होकर राष्ट्रीय अपराधियों को भूलकर भी क्षमा न करनी चाहिये और निर पराधको दण्डित करके प्रजा में क्षोभ उत्पन्न नहीं होने देना चाहिये । दण्डairat दण्ड मिलने की अचूक व्यवस्था रहनी ही चाहिये । पापीको क्षमा तथा निरपराधको दण्ड मिलजानेसे देश में पापकी वृद्धि, उसे प्रोत्साहन तथा राज्यकी शत्रुवृद्धि होती हैं । राज्यव्यवस्थाकी इस भूलसे देश की राजशक्तिका दण्डनीय आततायी लोगों के हाथों में फंप जाना अनिवार्य होजाता और प्रजामें हाहाकार मच जाता है। उसका अन्तिम परिणाम राष्ट्रविप्लव होता है । तब आततायियों को शान्तिप्रिय जनताका आखेट करनेका अवसर मिल जाता, रक्तकी नदियों बद्द निकलती और स्त्रीबालहत्या, व्यभिचार, लूटपाट, हत्याकांड आदि अत्याचार बिना रोक टोक होने लगते हैं । आजका भारत यह सब आंखोंसे देख चुका है और देख रहा है। राष्ट्रमें नृशंसता भ्रष्टाचार, अत्याचार आदिका खुल्लमखुल्ला नंगा नाच होने लगना ही राज्यशक्तिका आततायी के हाथोंमें चले जानेका स्पष्ट प्रमाण है ।
जो राज्यसंस्था पापियोंको उचित दण्ड दिये बिना उनकी चाटूक्ति या उत्कोचसे वशमें जाने लगती, पापियोंकी चाटुकारिता करने लगती और निरपराध शान्तिप्रिय नागरिकोंको अपना व्यक्तिगत शत्रु बनाकर उन्हें दण्डित करने लगती है, वह राज्यसंस्था स्वयं ही पापी और आततायी होती है । वह राज्यसंस्था लूटका ही ठेका होती है । ऐसी राज्यसंस्थाके प्रभावक्षेत्र में प्रजापीडनकी महामारी फैले बिना नहीं रहती | सज्जन सताये जाने लगते और पापी शक्ति सिर उठा लेती है। उचित दण्डप्रयोगके बिना अराजकता फैल जाती और दुष्टोंके उत्साह बढ जाते हैं ।
राजा या राज्यधिकारी जानें कि दण्ड उनकी व्यक्तिगत आवश्यकता नहीं. है । दण्ड तो राष्ट्र में मात्स्य न्यायकी रुकावट बने रहनेके लिये राष्ट्रभर की आवश्यकता है । दण्डप्रयोगके बिना प्रजामें मात्स्यन्याय चलपडना अनि