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चाणक्यसूत्राणि
विवरण- मनुष्य समाजानुमोदित सभ्य वेष धारण करे ! साधारण रहनसहन, सार्वजनिक उत्सव तथा राजसभा आदि सब ही इस सूत्र के व्यवहारक्षेत्र हैं। मनुष्य सभ्य समाजानुमोदित वेषभूषा पहनकर ही व्यव - दार करे। वह कहीं भी स्वेच्छाचारी वेषभूषा या अपनी शृंगार प्रियताका प्रदर्शन न करे । चाहे जितना समृद्ध होनेपर भी मनुष्यकी वेषभूषा राष्ट्रकी सार्वजनिक वेषभूषाकी प्रतीक होनी चाहिये । सार्वजनिक स्थानों में अना कपक, सौम्य वेषभूषामें ही जाना चाहिये । पाठान्तर--- नोद्धतवषधरः स्यात् । न देवचरितं चरेत् ॥ ६७ ॥ मनुष्य राजचरित्रका अनुकरण न कर ।
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विवरण -- मनुष्य धनमदमें आकर मुकुट, छत्र, चामर, ध्वज, विशेष वाइन आदि राजचिन्हों का उपयोग न करे । राजाके ऐश्वर्य से प्रतिद्वन्द्विता करनेवाले प्रदर्शन न करे । अथवा समाजमें व्यक्तिगत महत्वाकांक्षामूलक यशोलिप्सा, किसी साम्प्रदायिक या जातिगत स्वार्थी दलका नेतृत्व, प्रभुता आदि राष्ट्रसेवाविरोधी प्रदर्शनोंसे समाजकी भावनाको विपथगामी न करें : ( राजद्रोही संगठनों का विनाश )
द्वयोरपीष्यतोः द्वैधीभावं कुर्वीत ॥ ६८ ॥
अपने राज्यश्वर्यले ईर्ष्या करनेवाले, विरोधके ही लिये सम्मि लित होनेवाले माण्डलिक राजाओं या दो व्यक्तियों तक में अपने कृटप्रयोगोंसे पारस्परिक द्वेष पैदा करके, उन ईर्ष्यालुओं की महत्वाकांक्षाको तो पददलित तथा उनके अस्तित्वको विलुत करडाले |
विवरण - राज्यविरोधी बडे संगठनों के संबन्ध में सतर्कताका तो कहना ही क्या राज्यविरोधी दो व्यक्तियों तकको विरोधी दल बनाकर संगठित होनेका अवसर न पाने दे |