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युद्धका अवसर
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अशान्तिजनक आततायीका दमन करने के लिये उससे अधिक शक्तिशाली बनकर अर्थात् उसे हाथीके पैरके नीचे कुचल डालने जैसी उससे कई गुनी शक्ति एकत्र करचुकनेके पश्चात् ही उससे विग्रह करना उत्कृष्ट राजनीति है। इस सूत्रका भाव संग्रामविमुखताकी प्रेरणा देना नहीं है। इसमें तो सुमिश्रित विजय दिलानेवाली युद्ध सजा ( तैयारी ) करनेकी प्रेरणा है ।
पाठान्तर- हस्तिनः पादयुद्धमिव बलवद्विग्रहः ।
बलवान्से युद्ध हाथोके पैरसे उलझनेके ममान निर्बलका घातक बन जाता है।
आमपात्रमामेन सह विनश्यति ।। ५८ ॥ जैसे, कच्चा पात्र कच्च पात्रसे टक्कर लेने लगे तो दोनों ही टूट जाते हैं, इसी प्रकार समान शक्तिवालीका युद्ध दोनों हीका विनाशक होता है।
विवरण- क्योंकि समान शक्तिवालोंके युद्धोंके परिणाम दोनों हीके लिये विनाशक होते हैं, इसलिये युद्ध के बिना कोई गति शेष न रहनेपर ही युद्धका मार्ग अपनाना चाहिये । जब युद्ध न करनेका भी परिणाम विनाश ही सुनिश्चित दीखने लगा हो, तब वीरतासे युद्ध में जूझकर मरकर वीरगति पाना ही श्रेष्ठ नीति होती है। ऐसे भी समय आखडे होते हैं जब युद्ध करना अनिवार्य कर्तव्य होजाता है। ऐसे समय प्रतिपक्षीके यमराज बनकर उससे युद्ध ठानना कर्तव्य होता है । ___ इस दृष्टिसे शान्तिस्थापनाके इच्छुक राजाको अशान्तिदमन करने के लिये कच्चे पात्रको मिटा डालनेवाले पक पात्रके समान मिटा डालनेकी शक्ति एकत्र करना उत्कृष्ट राजनीति है । संग्रामविमुखता तो कदापि राजनीति 'नहीं है।
पाठान्तर- आमपात्रमापेन सह विनश्यति ।
अपक्क मृत्पात्र जलोंके सम्पर्कमें आते ही नष्ट हो जाता है। यह पाठ व्याकरण संगत नहीं है।