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चाणक्यसूत्रााण
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__ शीर्षक सूची
पृष्ठ शीर्षक सूची रात्रि जागरण अकर्तव्य,
मनकी बन्धनहीन स्थिति जीवनाचार कुलवृद्धोंसे सीखो ४२२ दुःखोंकी एकमात्र चिकित्सा ४४० परगृहप्रवेश अकर्तव्य,
अनार्यसंबंध अकर्तव्य ४४३ असंयमने समाजको भ्रष्टा- निन्दित कुलोत्पन्नका चिन्ह, चारी बना दिया है
____ संसारका महत्वपूर्ण सुख ४४५ लोकाचारका आधार ४२५ अन्धा विरोध अकर्तव्य, शास्त्राभावमें शिष्टाचार ही शास्त्र, दैनिक कर्तव्योंपर चिन्ताका शिष्टाचार शास्त्रसे अधिक मान्य ४२६ विनाशोन्मुखका चिन्ह
४४७ राजाकी दूरदर्शिताका साधन, वृथा कर्म त्याज्य, सर्वोत्तम __संसार मेषमनोवृत्ति है ४२७ वशीकार, पराधीन बातोंमें मेषमनोवृत्ति संसारमें बुद्धि
उत्कण्ठा वर्जित मानका कर्तव्य
४२९ पापीके धनका दुरुपयोग स्वामिनिन्दा अकर्तव्य ४३० पापी धन सज्जनके काम नहीं इन्द्रियनिग्रह जीवनकी परम
आता, बुरे अच्छे कामोंमें विशेषता
धनव्यय नहीं कर सकते ४५० असाधारण मनोबलका काम, भले बुरोंसे हिलमिलकर नहीं स्त्रीबन्धन समस्त पापों
४५१ तथा उत्पातोंका मूल ४३३ संसार भोजन और भोगमें विचारधर्मा लोगोंका स्त्रियोंसे __ जीवन नष्ट कर रहा है ४५२ कर्तव्यमात्रका संबन्ध,
आशाके दास सदा श्रीहीन ४५६ आत्मवेत्ता ही वेदज्ञ है ४३४ आशाके दास सदा अधीर ४५७ सुखोंकी अस्थायिता ४३५, अनुत्साह मृतावस्थ!
४५८ भोगानुकूल कर्म के प्रभावका काल ४३६ आशाके दास निर्लज, सबसे बडा दुःख
४३७ आत्मप्रशंसा अक्तव्य ४५९ मानव केवल वर्तमान में सुख दिवाशयन अकर्तव्य, चाहता है
४३९ ऐश्वर्यान्ध निर्विवेक ४६२