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पृष्ठ अमृतभोजी मानव
११० समाजकल्याणकारी त्रिवर्गान्तर्गत आय बढानेके उपाय,
काम
१३८ कापुरुषकी कर्तव्यहीनता १११. काम की दासतासे हानि १३२ स्वामीके स्वभाव परिचयका लाभ,
समाजमें निष्कपटॉकी न्यूनता १४० ___ गुह्य बताने के अनधिकारी ११२ साधुपुरुषांकी अर्थनीति १४४ मृदुखभावसे हानि, लघु अपरा- । एक प्रधानदोष समस्त गुणनाशक १४५ । धमें कठोर दण्डसे हानि ११३ महत्वपूर्ण काम अपने ही दण्डमें औचित्यकी आवश्यकतः ११४ अगम्भीरतामे हानि, बहुताका
विषम परिस्थिति में भी चरित्र. ।
११६ कर्तापन कार्यनाशक
रक्षा कर्तव्य
विश्वासपात्र रहना प्राणरक्षामे शक्तिसे अधिक भार उठाने से हानि ११९
अधिक मूल्यवान , सभामें व्यक्तिगत कटाक्ष हानि
पिशुन की हानि कारक
१२२ उपयोगी बात नगण्य की भी ने, कोध करनेसे अपनी हानि १२४ मत्य अश्रद्धालसे मत कह १४९ सुत्यकी महत्ता
१२५ सत्यकी अश्रद्धयता अनिवार्य १५० केवल भौतिक शक्तिकायका उपाय गुणिमोका आदर करना सीख १५१
नहीं, साहसमें लक्ष्मीका वास १२३ विद्वान् भी निन्दकाके लाग्छ. ध्यसनासक्तिसे हानि १२७ नोगे नहीं बचत समय दुरुपयोगसे हानि १२८ विद्वानकी निन्दा निन्दकका मुनिश्चित विनाशसे अनिश्चित
अपराध विनाशमें लाभ, दूसरोंका विश्वासके सदा अयोग्य
उत्तरदायित्व स्वार्थमूलक १२९ अविधासीको विश्वास रात्र दान स्वहितकारी कर्तव्य १३४ बनाना अस्तव्य १५४ दानका उचित मार्ग १३६ कपटपूर्ण नम्रताका विधान मत अनार्यप्रचलित व्यर्थ आचरण करो, साधुम्पोंके निर्णय के
अनर्थजनक. सच्चा धन १३७ विरुद्ध चलना अकीर्तन १५५