________________
अनार्यवादोंकी मालोचना
६३१
भारतपर उसके दुष्प्रभावका दिग्दर्शन करा आये हैं। परन्तु चाणक्य चन्द्रगुप्तने जिस समाजवादका प्रचार किया था वह बरसे बडे राज्याधिकारको भी स्वेच्छाचारकी छूट न देनेवाला प्रत्युत उसे सर्वथा निर्मूल करनेवाला और सच्चे मयों में प्रजातांत्रिक साम्राज्यका निर्माण करनेवाला था।
माजका भारतीय प्रजातंत्र भिन्न भिन्न स्वेच्छाचारी प्रान्तीय संगठनोंकी पारस्परिक स्वेच्छाचारिताओंका ही समर्थन करनेवाला तेजोहीन समूहमात्र है। केन्द्र प्रान्तोंके किये किसी अन्याय पर उसे रोकने टोकनेका सामर्थ्य नहीं रखता । स्वेच्छाचारका दमन ही समाजवाद है। और स्वेच्छाचारका दमन ही सच्चे प्रजातंत्रका ध्येय भो है । चाणक्य तथा चन्द्रगुप्तके इतिहासका अध्ययन तब ही सार्थक हो सकता है जब प्रजातंत्र के इस ध्येयको उौक ठीक समझा जाय और उसे अपने देशकी राजसत्तामें व्यावहारिक रूप भी दिया जाय। यदि प्रजातन्त्र के इस ध्येयकोग्यावहारिक रूप नहीं दिया जायगा तो चाणक्य चन्द्रगुप्त दोनोंने उन दिनों सिकन्दरको भारतमें न घुसने और न ठहरने देकर भारतको जिस रोगसे बचाया था भारतभूमि उसी रोगकी उपजाऊ भूमि बने बिना नहीं रहेगी और गाँवों से लेकर केन्द्र तक सम्पूर्ण शासन व्यवस्थाका सिकन्दरका ही भारतीय संस्करण बनना अनिवार्य हो जायगा।
मनुष्यकी भोगान्धता केवल बाहरवाले संसारमें ही अशान्ति नहीं फैलाती वह मनुष्य के पारिवारिक सम्बन्धों को भी बिगाडती है । भोगान्ध व्यक्ति अपने पारिवारिकोंसे अपनी व्यक्तिगत सुखेच्छा पूरी करने के अतिरिक्त उनके साथ कोई भी पारमार्थिक निःस्वार्थ कर्तव्य का पवित्र सम्बन्ध रखना नहीं चाहता। भोगान्ध व्यक्तिको मनोवृत्ति दूषित होती है। वह अपने पारिवारिकों को भी केवल अपने स्वार्थका साधन बनाना चाहता है। उसकी इस दूषित मनोवृत्ति के कारण उसके परिवार के किसी भी सदस्य की एक दुपरेसे कोई सहानुभूति नहीं रहती। भोगान्ध व्यक्तियोंसे संचालित इस प्रकारके परिवार कुछ दिन आपसमें लड झगडकर छिन्न भिन्न हो जाते हैं ।