________________
चाणक्यसूत्राणि
जका शत्रु होने से उसे भारत के प्रवेशाधिकार न देनेवाले चाणक्य चन्द्रगुप्त हार्दिक कृतज्ञताके साथ पूज्य हैं । परन्तु माश्चर्य की बात है कि वर्तमान साहित्यिकों की आँखोंके सामने उससे भी कहीं अधिक तीव्रताके साथ निंदनीय, अपने नीतिहीन निर्णयोंसे भारतमाताके वक्षस्थलपर नृशंसताके नायक सिकन्दर जैसी ही क्रूर नृशंसता करनेवाले भारतके ही अनजलसे परिपुष्ट, राज्यलोभी, कृतघ्न, असुर लोग उन्हीं वर्तमान साहित्यिकों के द्वारा दंडनीय सिद्ध नही किए जा रहे हैं। समझमें नहीं आता कि इन साहित्य. कोंकी दृष्टि इन लोगोंसे कौनसा उत्कोच लेकर इस प्रत्यक्ष सत्यकी ओरसे अंधी हो गई है कि चन्द्रगुप्त चाणक्य के जीवनयापी भगीरथ प्रयत्नसे सुनिर्मित अखंड भारतको खंड खंड करके, उनके मादर्शको पैरोंतले रौंढकर, सिकन्दरके ही प्रतिनिधि बनकर भारतमाताके मातृत्वको कलंकित करनेवाले लोग भाज भारतके दोनों खण्डोंमें राज्याधिकारसे मतवाले होकर भारतकी छातीपर मनमाने अत्याचार बढा रहे हैं । इस गंभीर प्रश्नका उत्तर प्रत्येक सुसाहित्यिक अपने हृदयसे ले और भारतमाताके प्रति अपना कर्तव्य पूरा करे । यदि यह वह नहीं करेगा तो सिकन्दरकी नृशंस मासुरिकताको छिपाकर उसे वीर नामसे प्रचार करने वाले प्राचीन कुसाहित्यिकों जैसा अपराध वर्तमान साहित्यिकों के सिरपर भी चढा ही रहेगा।
वर्तमान भारत चाणक्यने जो भारतको दक्षिण सागरसे हिमालय तक अखण्ड राष्ट्रनिर्माणका मादर्श दिया था, उसके सर्वथा विपरीत दो विद्यमान खण्डोंमें विभक्त आजके भारतका दयनीय चित्र वर्तमान भारतको राजनैतिक प्रति. भाको कलंकित करनेवाला अपमान है। आज भी भारतवासिके मनमें स्वभाव से निम्न प्रश्न उपस्थित होते हैं और अपना समाधान चाहते हैं
, चाणक्यके सुयोग्य शिष्य भादर्श सम्राट चन्द्रगुप्तने राज्यशासन संबन्धी जो कुशलता दिखाई थी आजके शासनपदारूढ भारतवासीने उस कुशलताको अपनाया है या पददलित किया है ? इसका उत्तर भारतवासीको सपने विवेकसे देना है।