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चाणक्यसूत्राणि
दुष्परिणाम भाजके भारतको सर्वत्र सुतीक्ष्ण कटुताके साथ भोगना पड रहा है और भावी भारतको न जाने कबतक भोगना पडता रहेगा। भाजके भारतीय इतिहाससेवी लोग इस बातका उत्तर दें कि वर्तमानमें की जाती हुई इस ऐतिहासिक राष्ट्रिय चोरीके अपराधके प्रकाशमें न आनेका उत्तरदायित्व आप लोगोंपर नहीं है तो किसपर है ?
ऐतिहासिकोंका वर्तमान कर्तव्य एक भोर तो चाणक्यकालीन भारतका गौरवपूर्ण इतिहाप्त है और दूसरी ओर वर्तमान भारतकी देशद्रोही असामाजिक प्रवृत्ति हैं। इन परस्पर विरुद्ध प्रवृत्तियों की उपस्थितिमें इतिहासपर लेखनी उठानेवालोंका कर्तव्य है कि वे भारतके गौरवमय अतीतको तथा अध:पतित वर्तमानको तुलना. स्मक ढंगसे देशके सामने लायें, देश के असामाजिकता रोगकी औषधके रूपमें चाणक्य चन्द्रगप्त के वास्तविक आदर्शको उसके सामने उपस्थित करें
और पूरा बल लगा दें कि देश उस आदर्शको ग्रहण करके मात्मसुधार करे। जबतक हमारे साहित्यिक लोक अपनी साहित्यसेवामें इस दृष्टिकोणको नहीं अपनायेंगे तबतक किसी भी साहित्य सेवीको साहित्यसेवा ऊखर-वपन या वन्ध्य प्रयत्न हुए बिना नहीं रहेगी। वर्तमान ढंगके साहित्यिकका साहित्य विचारशील पाठकके मनमें चाणक्य चन्द्रगुप्तके संबन्धमें कुछ निर्वीर्य ( अकार्यकारी ) श्रद्धामात्र उत्पन्न करके कर्तव्यहीन होकर खडा हो जाता है और अपने पाठकोंको भारतको जगानेसे संबन्ध रखनेवाला अगला कर्तव्य बतानेके संबन्धमें किंकर्तव्यमूढ होकर इस प्रकार बगले झांकने लगता है मानो इन लोगोंके साहित्यका देशके वर्तमानके सुधारके साथ कोई संबन्ध ही नहीं। देशहितैषी लोग भारतके साहित्यसेवियोंसे पूछना चाहते हैं कि क्या माप लोग अपने भारतकी सच्ची सेवा करनेकी रष्टिसे अपने इस अपराध ( सेवापराध) का परिमार्जन करनेके लिये अपनी साहित्य कलाका सदुपयोग करना अपना कर्तव्य मानेंगे?
वर्तमान भारतको चाणक्य चन्द्रगुप्तके इतिहाससे सच्चे राष्ट्रसेवकका भादर्श लेना है और उसे भारत सन्तानकी सुरक्षाके लिये सुरक्षित रखना