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________________ ६०२ चाणक्यसूत्राणि माचार्य विष्णुगप्त तथा चन्द्रगुप्तका यह मिलन वेद और धनुषका या ब्राह्म तथा क्षात्रशक्तियों का अभूतपूर्व संगम था। चन्द्रगुप्तके जो शौर्यवीर्य रणक्षेत्रमें अवतीर्ण हुए थे और वहां जो उसने म्लेच्छोन्मूलन किया था उनके साथ पदपदपर चाणक्यकी प्रतिभा लगी हुई थी । वास्तवमें चन्द्रगुप्त चाणक्यके हाथका यन्त्र मात्र था।' निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्' वाली घटनाने एक बार भारतमें फिर अपनी पुनरावृत्ति की थी। चाणक्य यन्त्री थे और चन्द्रगप्त उनके हाथका यन्त्र था। चन्द्रगत की चारित्रिक श्रेष्ठताने उसकी इतनी बड़ी सहायता की थी जो पैकडों सेनाओंसे भी नहीं हो सकती थी। उसकी चारित्रिक श्रेष्टताने शत्रुराज्यों तक की प्रजाको उसका भक्त बना दिया था। इससे उसे साम्राज्यविस्तार में अकथनीय सहा. यता मिली थी। कभी कभी विपत्तियां भी संपत्ति बरसाने लगती हैं। विपत्तियां सदा विनाश ही के लिये नहीं आतीं। सिकन्दरने जो भारतपर माक्रमण किया था, वही भारतमें चाणक्य तथा चन्द्रगुप्तके अवतारोंकी जोडीके प्रकट होनेका कारण बना था और उसी माक्रमणने भारतीय साम्राज्य के निर्मागका बीज भी बोया था । यदि सिकन्दरने भारत पर आक्रमण न किया होता तो नहीं कहा जा सकता कि चाणक्य और चन्द्रगतकी जोडी मार. तको मिलती या न मिलती। इस दृष्टि से तो यह माक्रमण भारतके लिये एक महातरदान बन गया था। यह घटना हानिसे लाभ दिलानेवाली बन गई थी । सिकन्दरके प्राक्रमणने आर्य भारतकी प्राचीनतम मार्यसभ्यताके साथ पाश्चात्य अनार्य बर्बरताका संघर्ष उत्पन्न कर डाला था। चन्द्रगुप्त नंद वंशका नहीं था मुद्राराक्षस नाटकके निम्न उद्धत प्रकरण देखनेसे मानना पडता है कि उसका नन्दोंसे कोई कौटुम्बिक सम्बन्ध नहीं था । उसे जो नन्दवंशका दाप्तीपुन कहा जाता है वह मिथ्या कल्पनामात्र है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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