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राजाकी दिनचर्या
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योग्यता है। अपने मंत्रियों तथा राजकर्मचारियोंको कर्तव्यके मार्गपर रखना उन्हें कतन्यमार्गसे तिलमात्र भी इधरसे उधर न होने देना राजाका ही उत्तरदायित्व है। राजाके पास इस उत्तरदायित्वको पालनेके लिये ऐसे विश्वासी गुप्तचर होने चाहिये जिनका काम राजाको राज्यसंस्थाकी भपवित्रताके विरुद्ध सावधान करना हो । धार्मिक राजामविश्वास्य मंत्रियों, देशद्रोही प्रजाओं तथा शत्रुओंको उचित रूपमें दण्ड देनेके लिये जिस किसी उपा. यका सहारा लेना उचित समझे वही राष्ट्रहितकारी होनेसे सत्यानुमोदित हो जाता है । जितेन्द्रिय होकर सब प्रकार के अधार्मिक आचरणोंसे अपनेको बचाये रखना राजाका व्यक्तिगत कर्तव्य या पुरुषार्थ है । प्रजाहितकी दृष्टिसे दुष्टों के साथ दुष्टता करके भी उनकी दुष्टताको तत्काल रोक देनेवाले सब प्रकारके शासकोचित व्यवहार करना राजधर्म के अनुकूल है।
समाजद्रोही, देशद्रोही प्रवृत्ति दण्डसे ही संयत रक्खी जा सकती है । जितेन्द्रिय लोग ही शासनदण्डका उचित प्रयोग कर सकते हैं। राज्यसंस्था ही एकमात्र वह शक्ति है जो दण्डप्रयोगसे मनुष्यकी समाजद्रोही प्रवृ. त्तियोंको संयममें रखकर उसे विवश कर सकती है कि राष्ट्रका प्रत्येक व्यक्ति सार्वजनिक कल्याण कर सकनेवाली नीतिको अपनाये ।
सर्वो दण्डजितो लोको दुर्लभो हि शुचिर्नरः । संसारके लोग दण्डभयसे ही कर्तव्य करते और अकर्तव्यसे बचते हैं। अपनी माभ्यन्तरिक प्रेरणासे कर्तव्य करते और अकर्तब्ध से बचने वाले शुचिलोग संसारमें होते तो हैं परन्तु दुर्लभ होते हैं। इसलिये राजा दण्डको सदा दी जगाये रक्खे । इसलिये रक्खे कि दण्ड ही एकमात्र ऐसा ब्रह्मास्त्र है जो राष्टको तो सब प्रकार की विपत्तियोंसे तथा शासकोंको कुशासनरूपी कर्तव्यभ्रष्ट तासे बचा सकता है । इसलिये जबतक मनुष्य-समाज दण्ड धारिणी राज्यसंस्थाके रूपमें सुसंगठित नहीं हो जाता तबतक कोई भी राष्ट्र राष्ट्रीय जीवनका आनन्द नहीं भोग सकता।
न्यायकी रक्षा दण्डपर ही माश्रित है। यदि न्यायसंस्था के साथ दण्डसंस्था न हो तो न्यायका कोई मूल्य नहीं रहता, दण्ड ही न्याय्य बातको माननेके