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________________ যাখালি मित सपा सिन्धके छोटे छोटे गणराज तथा वहां की स्वतंत्र जातियां संगठन हीनतासे किसी भी महत्वाकांक्षी पशु के सामने सिर झुकाने को स्तुत हैं । देशकी यह शोचनीय स्थिति देश के विज्ञ लोगोंको काटेकी भाँति चुभ रही थी। सड़ी के 24 कि देश की रक्षा के नामपर देश के शुद्ध शुद्र ज्यों को क ल शशिमालो साम्राज्य के रूपमें परिणा कर अलने का प्रस्ताव ना को बारे मा में समर्थन भी मिलने लायचा हा निर्वाचित र शिक्षित चन्द्रगुप्तको केवल आधुनिक कामटही नाकारभरका चर्मकी नींग पर सुप्रति घर घले (ले. सामाज में मान मार्य च ले ४३ ५५१२१ २२ भारत र १ वातावरण चन्द्र गुप्त के सबाट बनने के अनुकूल बन चुका था। इस अनुकूल वातावरणाने चन्द्रगुपको गीय क्रान्तिका अग्रदूत तथा विजयी नेता बना डाला ने मगध के सिंहा. जनपर अति सुगमतासे अधिकार प्रतिष्टित करने के पश्चात अन्य भी रहतसी समरयात्राओंमें विजय पाकर एक विशाल साम्राज्य बना लिया। वह न केवल लिन्नभिन्न भारतको अपितु भारत सीमासे बाहर तक के मनुष्यसमाजको एकताकी धर्मप्रधान डोस में बाँधने में सफल हो गया था। चन्द्रगुप्त के पश्चात् उसके पुत्र बिन्दुसार तथा पौत्र अशोकने देश में इतिहासात नई राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न करके मानवजातिकी उन्नति के लिये भारत के धर्ममूलक राजनैतिक आदर्शको लसार के सामने ला सडा किया। चाणपकी देशभक्तिको आदर्श ही अशोककी सच्ची देशभक्तिका कारण बना । चाणक्यको अशोक के महान् व्यक्तित्वकी भूमिका कहना अत्युक्ति भाचार्य लॉटल्य २ ज चरित्र तथा मानवधर्ममें कोई भेद नहीं मानते थे । वे इन दोनों को अभिन्न मानते थे। उनके विचार के अनुसार राजा न्यायका अवतार, धर्मका प्रवर्तक तथा मनुष्यताको साक्षात् मूर्ति है। राष्ट्र में धर्मकी
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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