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चाणक्यसूत्राणि
प्रकट होती है। इन्होंने जहां अर्थशास्त्र का उद्धार किया वहां विघटित होनेसे निर्बल पड गये हिंदु राज्यतंत्रको एक शस्त्र के नीचे लाकर सबल हिन्दू राज्यका रूप देकर हिन्दू राजनीतिमें नीन जान डाल दी थी। उस समय में छोटे-छोटे हिन्दू राजा कलहों तथा व्यसनोंमें फंसे रहते थे। देश में एकताकी स्थापना करने वाला कोई शासन नहीं था।
चाणक्यने मनुष्य समाजको सब प्रकार की सामाजिक व्याधियों से मुक्त कर दिया था और देश को कल्याण तथा अखण्डशान्तिका अव्यर्थ राजमार्ग दिखाया था। चाणक्य की कल्पना देशद्रोह मनुष्यरमाजका कलंक है : इस कलंकको धोना प्रत्येक राष्ट्रप्रेमीका पवित्र का है ! चाणक्यने देखा कि प्रभुताके लोगों को देशदोरा बीज विद्यमान है। सच्चा राजा बन ने के लिये यह अनिवार्य रूप से वश्यक है कि वह प्रभुताका लोभी न होकर सच्चा समाजसेवक । चाणगे अपने समस्त राजनैतिक प्रयत्नोंके द्वारा इसी सत्यको मानो सानो रक्खा था और रखकर राजाओं को त? आदर्श राज्य नशा राष्ट्रको आदर्श समाज बनाने की कला सिखाई थी।
राजानमुत्तिष्ठभानमनुनिष्टन्ते भृत्याः । प्रमाद्यन्तमनप्रमाद्यन्ति । कर्माणि चास्य भक्षयन्ति । द्विद्भिश्चातिमधीयते । तस्मादुत्थानमात्मनः कुर्वीत । राशां हि व्रतमुत्थानं यज्ञ कार्यानुशासनम् । दक्षिणा वृत्तिसाम्यं च दीक्षितस्याभिषेचनम् । प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम् । तस्मानित्योत्थितो राजा कुर्यादानुशासनम् । अर्थस्य मूलमुत्थानमनर्थस्य विपर्ययः । अनुत्थाने ध्रुवो नाशः प्राप्तस्यानामतस्य च । प्राप्यते फल मुत्थानालभते चार्थसम्पदम् ॥ अर्थशास्त्र १-१९