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चाणक्यसूत्राणि
घटघटवासी सत्यस्वरूप विवेक भगवान्के द्वारा संगठित किया, देशकी कपट आध्यात्मिकता नामवाली कर्तव्यविमुख बासुरी प्रवृत्तियोंको पराजित किया और देश में फैली हुई अपनी राज्यसंस्थाको सुदृढ बनाने और उसे सुधार कर रखनेकी ओरसे उत्पन्न हुई दीर्घकालीन उदासीनताको मूल से मिटा डाला। उस उदासीनताको मूलसहित मिटाकर देश में राष्ट्रीय पुरुषार्थको जगाया और जगाते जगाते समग्र भारतके मानव-समाजको अपने साथ कर लिया। चाणक्यने जो भारतपर विजय पाई उसे केवल राजनैतिक विजय नहीं कहा जा सकता। वह विजय जितनी राजनैतिक है उससे कहीं अधिक माध्यात्मिक विजय कहा जा सकता है।
इतिहास में चाणक्यकी आध्यात्मिक विजयके प्रमाण विद्यमान हैं। चाणक्य. का शिप्य चन्द्रगुप्त मगधके सिंहासन पर आरूढ होनेसे भी पहले समद्रसे हिमालय पर्वतवासी मानव-समाजके हृदयका सम्राट् बन चुका था। चन्द्रगुप्त भारतमें श्रद्धा, प्रेम तथा स्नेहका भासन पा चुका था। यही चाणक्यकी आध्यात्मिक विजय थी । यही कारण था कि लोग चन्द्रगुप्त के नामसे संत्रम्त न होकर प्रेम तथा कृतज्ञतासे उसके शासनको शिरोधार्य करने लगे थे । क्योकि चाणक्य का आदर्श भारतवासियों के हृदय में स्थान पा चुका था इसलिये भारत में चन्द्रगुप्त की विजयके परिणामस्वरूप सुसंगठित राष्ट्रीय ताका जन्म हो गया था । क्योंकि सुसंगठित राष्ट्र-निर्माणका भादर्श मनुष्य ताका संरक्षक होता है इस कारण वह भादर्श जगत् भरके लिये वरेण्य मादर्श है । इस दृष्टि से चाणक्यने भारतके ही नहीं संसार भरके मनुष्य समाजको निर्धान्त राजनैतिक दृष्टिकोण देनेवाले मार्ग-दर्शकके रूप में जो प्रतिष्ठा पाई है चाणक्य उसके सर्वथा उपयुक्त थे ।
आर्य चाणक्यकी नीति आदर्श राष्ट्र, मादर्श राजचरित्र, तथा सुसंगठित भखंड भारतीय साम्राज्य इन तीन बातोंकी स्थापना करना चाणक्यकी कल्पनामें था । यह महापुरुष मपनी इन तीनों कल्पनामको मूर्तरूप देनेमें उन दिनों जब कि भाजके