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चाणक्यसूत्राणि
ये अपने अनुवंशिक निःस्पृह ब्राह्मणत्व तथा अपनी सुतीक्ष्ण प्रतिभाका सात्विक अहंकार रखते थे । इन महानुभावको विगत सैकडों वर्षोंतक कौटिल्य इस भ्रममूलक अशुद्ध सदोष नामसे स्मरण किया जाता रहा है । इतिहास संशोधक लोगोंका कहना है कि यह अशुद्ध नामकरण ब्राह्मण धर्म श्रद्धालु बौद्ध तथा जैन लेखकोंकी कल्पना है । वे इसका कारण यह बताते हैं कि ये महाशय ब्राह्मणधर्मके प्रवर्तक वर्णाश्रमधर्मके प्रति निष्ठा रखनेवाले तथा वैदिकधर्मकी शाश्वतपरम्परा के अनुयायी और पोषक थे, इस लिये तो बौद्ध सेवकोंने चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त दोनोंके युगप्रवर्तक होनेपर भी इन्हें कोई महत्व नहीं दिया । तथा इनके पौत्रको बौद्धधर्म में दीक्षित हो जाने से ब्राह्मणधर्मी लेखकोंने भी इन्हें कोई महत्व नहीं दिया । जैन, बौद्ध लोगोंने ब्राह्मणधर्मके प्रवर्तक चाणक्यसे रुष्ट होकर इनके कौटल्य नामको बिगाडकर कुटिलता रूपी निन्दाको सूचक कौटिल्य नाम लिखा जो सैकडों वर्षों प्रचलित रहा । अबके इतिहास संशोधकोंकी कृपासे अब निन्दासूचक कौटिल्य नाम हटा दिया गया है और कौटल्य यह शुद्ध नाम स्थापित किया जा चुका है ।
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कुछका विचार है कि कौटिल्य नाम कौटल्य नामका प्रामादिक संशोधन या संस्करण है । ऐतिहासिकों की खोज के अनुसार ये महानुभाव पश्चिमो उत्तर भारत में तक्षशिला के निवासी अप्रतिग्राही ब्राह्मण थे । हमारी दृष्टि में तो ये कहीं भी निवासी रहे हों इनके जन्मस्थानका कोई महत्व नहीं है । इन्हें जो ख्याति मिली है वह न तो भारतके किसी विशेष भूभागके निवासी होनेसे मिली है और न किसी वंशके वंशज होने से मिली है । ये महानुभाव तो अनन्य साधारण प्रतिभासे जगद्विख्यात हुए हैं। क्योंकि चाणक्य अखिल भारतीयता के अनन्य उपासक थे इस दृष्टिसे भारत माताका शस्यश्यामळ सुजल सुफल सम्पन्न वक्षःस्थल ही उनका जन्मस्थान था और समग्र भारतके निवासी उनके भ्राता भगिनी थे। वे जीवन भर भारतवासियोंकी चिन्तामें अपना जीवन उत्सर्ग करके गये हैं । न केवल