________________
चाणक्यका मंत्रित्व त्याग
५६५
सका। चाणक्यने उसके इस देशद्रोही कामका तत्काल प्राणान्त दण्ड देना उचित माना। इसलिये माना कि चन्द्रगुप्त में वीरता तथा संगठन-शक्ति अत्यधिक होनेपर भी पर्वतक उन दिनों उससे कहीं अधिक शक्तिशाली राजा माना जाता था। उसके रहने तक चन्द्रगुप्तका सम्राटपन सुरक्षित नहीं समझा गया। इसलिये उसने अपने सुचिन्तित राजनैतिक षड्यन्त्रको कार्य रूपमें परिणत करके नन्दके समान पर्वतककी भी गुप्त हत्या करा हाली। इस प्रकार चाणक्यने चन्द्रगुप्तको मगध सिंहासन पर निष्कंटक बनाने का प्रथम सोपान पूरा कर डाला। __ ज्यों ही पर्वतकका दूत सेल्यूकसके पास पहुंचा त्यों हो वह भारत पर आक्रमणके लिये चल तो पडापरन्तु भारतमें आते ही उसे पता चला कि उसे निमंत्रण देकर बुलानेवाले पर्वतककी सहायता सुपना बन चुकी है। इस अवसरपर भी भारतका विख्यात देशद्रोही तक्षशिला नरेश भीक सेल्यूकसकी सहायताक लिये आगे बढा । इस समाचारको पात ही बगुल विशाल सेना लेकर मिन्धके तट पर जा पहुँचा और सेल्यूकस तथा हम्भिकको संयुक्त सेनापर ऐसे धाक श्रामण किये कि अम्मा का तो नाम और चिन्हतक शेष नहीं रहा तथा सेल्यूकसको प्राण बचाने के लिये चन्द्रगुप्त से भारत पर फिर कभी आक्रमण न करने की प्रतिज्ञाके साथ अपने भव्य एशियाके विजित क्षेत्रोंको भागमण रूपी अपराधके दण्ड स्वरूप चन्द्रगुप्तको सौंपकर संधि मांगनी पडी और उल्टे पैरों स्वदेश लौट जाना पडा । यों चाणक्य के भारतको एक विशाल साम्राज्य बनानेवाले कार्यक्रमका दूसरा काँटा भी निकाल दिया गया।
चाणक्यका मंत्रित्व त्याग अब चाणक्य के मनमें पाटलीपुत्रके सिंहासनपर चन्द्रगुप्त जैसे सुदूरवा. सीकी लोकप्रियताको सुदृढ़ करनेका केवल एक प्रश्न शेष रह गया | चाणक्य समझ रहे थे कि मगधके लोकप्रिय मंत्री अमात्य राक्षसके मनमें स्वाभाविक रूपसे नन्दवंश के उच्छदका पश्चाताप काम कर रहा है । अमात्य राक्षसको