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प्रसंगोचित आलोचना
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राजा शासन कर रहा है जान लो कि वहांका समाज निश्चित रूपसे भादर्श हीन है और पतित है। आदर्श राजा अपनी पूरी शक्ति लगाकर समाज में अपवित्रताको उत्पन्न होने, घुसने तथा फूलने फलनेसे रोके रहता है।
मार्य चाणक्य भारतका भादर्श नागरिक तथा भारत माताका अत्यन्त यशस्वी सूपूत था। मार्य चाणक्य उन विशेष मादर्श सेवक पुरुषों में से था जो अपने टूटे-फूटे जैसे तैसे रद्दी राष्ट्रकी सेवाके नामसे दिन न काटकर राष्ट्रको यथार्थ में जैसा होना चाहिये वैसा बनानेके लिये अनर्थक परिश्रम करके गये हैं। आदर्श पुरुष आदर्श राष्ट की दिव्य मूर्ति की कल्पना करके सारे राष्ट्रको उसीके अनुसार ढालने में लग जाया करते हैं । वे देश को इतनी मुख्यता नहीं देते जितनी अपने भादर्शको देते हैं, वे अपने भादर्शको मुख्यता देकर सारे राष्ट्रको उसकी इच्छा भनिच्छासे निरपेक्ष रहकर अपने भादर्भ के पीछे घसीटते ले जाते हैं । उनका आदर्श राष्ट्र संसार में कभी मूर्तरूप धारण कर सके या न कर सके वे तो अपनी संपूर्ण शक्ति उसीकी सेवामें लगाते रहते हैं। उनकी कल्पनाका आदर्श राष्ट्र उनकी संपूर्ण सेवाशक्तिको अपनी ओर आकृष्ट किये रहता और उन्हें सेवाका सन्तोष देता रहकर तृप्त रखता है। भारत माताके सुपूत चाणक्य के सम्मुख भारतके कल हायमान भोगमन्न समाज तथा राजा दोनोंको अपने भादर्शपर मारूढ कर देनेका गंभीर कर्तव्य उपस्थित हुभा जो पूर्णतया सफल हुआ था। उन दिनों भारतमाताके उस एक ही स्पूतके अक्लान्त परिश्रमसे भारत परा. भूत होनेसे बच गया था।
एकेनापि सुपुत्रेण सिंही स्वपिति निर्भयम् ।
सहैव दशभिः पुत्रै र सहति गर्दी॥ सिंहनी अपने म केले पुत्र के बल और पुरुषार्थ से जंगल में निर्भय रहती है जब कि गधीको अपने दसों पुत्रोंके साथ बोझ ढोना पडता है।
भारतकी उस समयकी निर्बल राजनैतिक परिस्थितिने चाणक्य जैसे विचारशीलकी ब्राह्मी प्रतिभाको तथा उसके शिष्य चन्द्रगुप्त जैसे वीरकी