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________________ चाणक्यसूत्राणि विवरण-शत्रुकी निर्बलताका पूरा पता लगालेनेपर ही उसपर विजय पानेकी पूर्णाग सबद्धता होसकती है । राजाके लिये शत्रुकी निबं. लता जाननेका उपाय कुशलमन्त्रियोंके साथ विचारविनिमय करनेके अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं है । राजा योग्यमन्त्रीके बिना राज्यरक्षाके सम्ब. न्धमें अंधा बना रहता है । देशविदेशके विशेषज्ञ मन्त्रियोंके लिये ही संभव है कि वे शत्रुशक्तिके विषय में ठीक ठीक पता चलाकर या तो युद्ध की प्रेरणा दें या युद्धसे निवृत्त रखें। इसलिये मन्त्रियोंके साथ राजाका अत्यन्त धनिष्ट सम्बन्ध रहना चाहिये । राजाको भी मन्त्रीको सम्मति. पर विश्वास करके राज्यका परिचालन करना चाहिये । राजा शत्रुकी शक्तिका पूरा पता होनेपर ही अपनी शक्तिको अजेय बना सकता है । मन्त्रणा करते समय बालक, बन्दर, तोता, मैना मादि ऐसा कोई जीवजन्तु न हो जो मन्त्रको लेउडे और उसे शत्रुपक्षमें पहुंचादे । मन्त्रकाले न मत्सरः कर्तव्यः ॥ ३१ ॥ मन्त्रग्रहण करते समय मन्त्रदाताके छोटे बडेपनपर ध्यान न देकर उसके अभ्रान्तपनेपर ईर्ष्या न करके श्रद्धाके साथ मन्त्र ग्रहण करना चाहिये। विवरण- उस समय किसीको दाबकर अपनी बात ऊपर रखनेका प्रयत्न न होना चाहिये । अच्छी बात सबकी सुननी चाहिये । मन्त्रके समय शाब्दिक संघर्ष नहीं होना चाहिये । उस समय अपने. अभ्रान्तपनेपर स्टने से धैर्यहानि तथा कार्यका न्याघात निश्चित होजाता है। त्रयाणामेकवाक्ये सम्प्रत्ययः ॥ ३२ ॥ विचारणीय प्रस्तुत कर्तव्यके विषयमें, ऊपर वर्णित तीनों मन्त्रणाकर्ताओंका ऐकमत्य होजाना मन्त्र की श्रेष्ठता है । उससे कार्यसिद्धि सुनिश्चित हो जाती है । विवरण- 'मानी प्रतिमानिनं ' इस सूत्रके अनुसार (1) मन्त्रग्रहीता, (२) अपना माभ्यन्तरिक ज्ञानस्वरूप मन्त्रणादाता तथा (३)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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