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________________ राजाका कर्तव्य ५२३ कष्ट पहुँचाते रहते हैं, उन्हें अपने कौशल और बलसे सदा नष्ट करता रहे। राजा गुप्त रूपसे लोगों के दस्यु-कष्टों तथा राज्यकीय लोगोंके राजशक्तिके दवावसे किये हुए गुम उत्पीडनों को जाने और उनका प्रतिकार करें। _चाणक्य कहना चाहते हैं कि राष्ट्र में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दो प्रकारके चोर होते हैं । जिसका जो अधिकार नहीं उसका उसे लेते रहना या लेनेका उद्योग करना चोरी है। मनधिकार भोग तथा अनधिकार भोगकी इच्छा हो चोरी है। कानून की पकडमें भा जानेवाले चोर 'प्रत्यक्ष चोर ' कहाते हैं । कानूनकी पकडमें न मानेवाले चोर ' अप्रत्यक्ष चोर' होते हैं । चोर गठकरें, जेबकटे, राहगीर, डाकू, उचक्के, जुआरी, उस्कोचजीवी, राजकर्मचारी आदि प्रत्यक्ष चोरोंकी श्रेणी में माते हैं। अनुचित लाभ लेनेवाले व्यापारी, रोगीका अर्थ शोषण करनेवाले वैद्य, डाक्टर, हकीम, वक्कलों के शोषक तथा अन्यायी अदालतोंके समर्थक वकील, मंत्री आदि राज्य के संचालक, राष्ट्रको निर्धन बनाकर अपरिमित वेतन-भत्ते आदि डकार जानेवाले शासक, सच्चा धर्मप्रचार न करनेवाले धर्मोपदेशक, देशके युवकों को सच्चो शिक्षा न देनेवाली, प्रत्युत उनका नैतिक पतन करने. वाली शिक्षासंस्थायें, अध्यापक, आचार्य, प्रोफेसर, प्रिन्सिपल, राजनीतिसे अलग रहकर भीरु, निवीय, वन्ध्या, निस्तेज धर्मकी दुहाई देने फिरनेवाले धर्मध्वजी सन्त, महात्मा, महर्षि राजर्षि, कथावाचक, व्याख्याता तथा ग्रन्थलेखक कुशासनका विरोध करनेसे डरने कतराने और इसीलिये दूषित राज्यसंस्थासे अविरोधकी नीति अपनानेवाले पत्रकार, नेता, व्यवस्थापिका, सभामों के सदस्य, धार्मिक, साहित्यिक, माध्यास्मिक संस्थायें विद्वत्सभार्य तथा प्रजाको न्याय न देकर न्याय बेचनेवाले न्यायालय ये सबके सब काननकी पकड में न आनेवाले राष्ट्रके अप्रत्यक्ष चोर हैं । ये लोग प्रत्यक्ष चोरोंसे अधिक हानिकारक हैं । ये लोग कानूनको पहुँचसे बाहरवाले दुर्गामें मुर. क्षित बैठकर प्रजाका धन अपहरण करते हैं। इनके अतिरिक्त समाजके पतनसे जीविका चलानेवाले लॉटरी, पहेली घुडदोड आदि अनेक रूपों में
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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