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न्यायी राजाके प्रति प्रजाकी भावना
योंके अधीन होकर प्रजाको राजकर्मचारियों की भांति-भांतिकी लूट का माम्बेट बना देते हैं । ऐसे राजा लोग प्रजामें दुःख और क्षोभ पैदा करनेवाले बनकर अपने समस्त राष्ट्रका नाश कर बैठते हैं । पाठान्तर- ... ... ... ... विनाशयन्ति ।
(प्रजारंजनका उपाय ) सुदर्शना हि राजानः प्रजा रंजयन्ति ॥ ५५८॥ लोकप्रिय या प्रजाको सुकरतासे दर्शन देते रहनेवाले राजा लोग अपनी प्रजाको सखो और प्रसन्न रखने में प्रयत्नशील रहते हैं।
विवरण- गुण, गौरव, शौर्य, प्रज्ञा, तथा दयासे भूषित सौम्यमूर्ति राजा लोग कर देकर राज्य संस्थाको पालनेवाली प्रजाको सुखसमृद्धि से संपन्न बनाकर रखनी अपना कर्तव्य मानते और न्यायार्थी प्रजाको सुकरतासे दर्शन मिलने की व्यवस्था रखते हैं। जब राजा लोक प्रजाको स्नेह, क्या, अभयदान तथा दर्शनोंसे अनुगृहीत करते रहते हैं तब ही प्रजा उनके प्रति अनुरक्त और सुखी रहती है ।
(न्यायी राजाके प्रति प्रजाकी भावना ) न्याययुक्तं राजानं मातरं मन्यन्ते प्रजाः ॥५५९ ॥ प्रजा न्यायी राजाको मातृतुल्य माना करती है। विवरण- कर देकर राजकोषको सम्पन्न बनानेवाली प्रजा, नीतिपूर्ण, न्यायपरायण राजाको माताके समान हितैषी मानने लगती और उसे सम्पन्न रखना अपने मातृपालन जैसा पवित्र कर्तव्य माना करती है। प्रजाको ऐसे नीतिपरायण राजाको कर देते समय हर्ष होता है । ऐसे राजाकी प्रजा नात्मकल्याणकी भावनासे उत्साहित होकर उसके राज्यकोषको भरने में कर्तव्य-पालनका संतोष तथा गौरव अनुभव किया करती है । मातापिता