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चाणक्यसूत्राणि
( दुर्विात उलहनेसे न मानकर दण्डसे मानता है )
( अधिक सूत्र ) उपालम्भो नास्त्यप्रणयेषु । __ अविनीत अश्रद्धालुओंको उलाहना देना या उनकी शाब्दिक निन्दामात्र करना निरर्थक होता है (कोई अर्थ नहीं रखता )।
विवरण- विनय, श्रद्धा तथा प्रीतिसे हीन दुहृदय, अप्रणयी लोग अपने अपराधोंपर उपालम्भ, ( उलाहना, निन्दावचन ) रूपी सामान्य दण्डका कोई मूल्य नहीं लगाते । उन्हें तीव्र दण्ड देनेकी आवश्यकता होती है। लज्जाहीन मविनीत अश्रद्धालुओंपर उलहनेका कोई प्रभाव नहीं होत!! उन्हें उलहना देकर उनका कुमार्ग नहीं छडाया जा सकता। वं सामक नीतिसे वशमें न आकर दण्डनीति के योग्य होते हैं ।
उपालम्भ दो प्रकार का होता है- एक तो गुणों का स्मरण दिलाकर कि ऐसे प्रतिष्ठित कुल में उत्पन्न हुए तुम्हारे लिये यह क्या उचित था ? दूसरेदोषोंकी निन्दा करके कि तुम जैसे अयोग्य व्यक्ति और कर हो क्या सकते थे ?
(कुसाहित्य समाजको भ्रष्ट करता है ) दुर्मेध सामसच्छास्त्रं मोहयति ।। ५.८॥ म्लच्छोंके शास्त्र अर्थात् अनात्मज्ञ लोगोंके लिखे हुए ग्रंथ अल्पबुद्धि लोगोंको ठगते हैं। अथवा- मिथ्याशास्त्र या ग्रन्थोंकी कुसृष्टि दुर्मेधा लोगोको विपथगामी किया करती है ।
विवरण- विषयाभिनिवेश या अकर्तव्यमें प्रवृत्त करने तथा कर्तव्य छुडानेवाले शास्त्र असच्छास्त्र कहाते हैं । यह सारा संसार मसान्यों या असच्छास्त्रों का बहकाया हुमा ही तो विपथमें धक्के खाता फिर रहा है ।
किसीकी अनुभवसंपत्ति उसीके मनरूपी खेतकी उपज होती है। उस अनुभवसम्पत्तिका गणित या लेखाजोखा ही शारोंका रूप ले लेता है :