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चाणक्यसूत्राणि
( रात्रि जागरण अकर्तव्य ) न चार्धरात्रं स्वपेयात् ।। ४६५ ।।
आधी रात बिताकर न सोये ।
विवरण - रात्रिके प्रथम याम बीतनेपर सो जाना चाहिये तथा एक याम रात्रि रहते जाग उठना चाहिये केवल मध्यके यामोंमें सोना चाहिये । ब्राह्म मुहूर्त में उठना अत्यावश्यक होनेसे मनुष्य पहले प्रथम यामसे अधिक न जागे । ' ब्राह्मे मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी' ब्राह्म मुहू
की नींद पुण्यक्षय करनेवाली है। आधी रात तक जागते रहने से दिनमें सोना अनिवार्य होजाता है जो स्वास्थ्य के लिये हितकर नहीं है । दिनमें सोना आयुर्वेद में प्रायः समस्त रोगका कारण बताया गया है । दिवानिद्रा से बचनेके लिये प्रथम यामसे अधिक नहीं जागना चाहिये । पाठान्तर - न चार्धरात्रं स्वप्यात् । स्वप्यात् पाठ व्याकरणसंगत है ।
( जीवनाचार कुलवृद्धों से सीखो ) तद्विद्भिः परीक्षेत ॥ ४६६ ॥
कब सोना, कब जागना, कब खाना तथा कब चलना युक्त है, ये बातें अनुभवी कुलवृद्धों, संभ्रान्त विद्वानोंसे सीखे।
विवरण - भविचारशील लोग अपनी दैनिक चर्यामें यथेच्छ व्यवहार करके मिरन्तर रोगी रहते और क्लेश पाते हैं ।
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥ ( भगवद्गीता )
परिमित भाहार विहार करनेवाले युक्त कर्म, युक्त जागरण तथा युक्त शयन करनेवाले के पास दुःखनाशकी कला का बसती है ।
पाठान्तर - न तद्विपरीक्षेत ।
दिनचर्यासंबन्धी कर्तव्याकर्तव्यकी परीक्षा में हानिकर विरुद्ध निर्णय न कर बैठे । यह पाठ अपपाठ है ।