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चाणक्यसूत्राणि
बालक । जैसे बोलोगे वैसा काटोगे । इसलिये बीजको सदा शुद्ध निर्दोष बनाकर रखना चाहिये । मातापिता ही बालकोंके बीज हैं। उनके निर्दोष आचरण होनेसे ही देशको ऊँचे मनुष्य मिलने संभव हैं। मानवशिशु जिन या जैसे मातापिताकी गोदमें उतरता है उसमें अनिवार्यरूपमें उन्हींके गुण आते हैं । संयमी असंयमी मातापिताके संयमी असंयमी सन्तति होती है ।
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( बुद्धि शिक्षादीक्षा के अनुसार ) यथाश्रुतं तथा बुद्धिः ॥ ४५९ ॥
जैसी जिसकी शिक्षा होती है वैसी उसकी बुद्धि बनती है । विवरण- इस किये शिक्षा में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि विद्यार्थियोंको भ्रान्त इतिहास, भ्रान्त विचार, भ्रान्त चरित्र, पढाया, सुनाया, सिखाया या दिखाया ही न जाय। जिन बालकोंकी शिक्षादीक्षापर राष्ट्रका भविष्य निर्भर है उनके चारित्रिक विकासके विषय में कितनी बडी सावधानीकी आवश्यकता है ? यह बात शिक्षाशास्त्रियोंके सोचनेकी है। ( आचार कुलके अनुसार )
यथाकुलं तथाऽऽचारः || ४६० ।।
जैसा कुल वैसा आचार |
विवरण - लोगोंके आचार कुलकी आचारपरम्परा के अनुसार होते हैं। जो वंश, धर्म, गुण, गौरवमें जितना सम्पन्न होता है, उस कुलका
किकव्यवहार भी उसी प्रकारका उदार होता है । उस कुलमें पले बालकका उदार होना स्वाभाविक होता है । आाचारके कुलाचार, शिष्टाचार, लोकाचार, स्याचार आदि अनेक भेद होते हैं । इसी अभिप्रायसे ' सुत पितृगुणं धत्ते धत्ते मातृगुणं सुता' की लोकोक्ति प्रचलित है ।
जिस कुलके बड़े लोग सूरज निकलने तक सोते हैं, उस कुलके बालक भी सूरज निकलने तक सोये पड़े रहते हैं। जिस कुलके बड़े लोग खड़े होकर