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पंचायती राज्यकी कल्पना
हीन होनेकी भूल कभी न करें। अपने ऐसे धार्मिक प्रभावशाली गुणी साथी रखें जो राजकीय प्रमाद, मन्याय या अत्याचारका प्रबल विरोध कर सकें
और उसे रोक सकें । चाटुकारोंको अपना साथी न बनायें। राज्योंकी स्थिरता, समद्धि, यश और सफलता सहायकोंकी ही योग्य छोटपर निर्भर करती है। राजा लोग शौर्य, ज्ञान, विज्ञान तथा नीतिसे संपन्न सहकर्मियों को लघुबुद्धिसे उपेक्षित न कर बैठे । पाठान्तर- सम्पाद्यात्मानमन्विच्छेत् सहायान् । राजा अपनेको योग्य बनाकर अपने योग्य सहकारी नियत करे ।
नासहायस्य मन्त्रनिश्चयः ॥१६॥ मन्त्रिपरिषद्की बौद्धिक सहायतासे हीन अकेला राजा अपने अकेले सीमित अनुभवोंके बलसे राज जैसे सुदूरव्यापी जटिल कर्तव्योंके विषयमें उचित निर्णय नहीं कर सकता।
विवरण-"सब, सबकुछ नहीं जान सकते" की लोकोक्तिके अनुसार एक मनुष्य के अपने पराये राष्ट्रों की परिस्थितियोंसे परिचित न होसकनेके कारण स्वपरराष्ट्र संबद्ध कर्तव्योंके निर्णय में स्वदेशसंबंधी तथा वैदेशिक दोनों प्रकारका अनुभव रखनेवाले सूक्ष्मदर्शी, प्रतिभाशाली, अनागतविधाता, प्रत्युत्पत्रमति, अनुभवी विद्वान् मन्त्रियोंसे मन्त्रणा करना आवश्यक होता है । स्वराष्ट्र परराष्ट्र के संबंध सोचते समय दोनों राष्ट्रों की समस्त परिस्थि. तियें तथा आवश्यकतायें चित्रलिखितके समान ध्यानमें होनी चाहिये और सस ध्यानसे अपने राष्ट्रकी समस्त आवश्यकताओंकी रक्षा होनी चाहिये । उन उन विषयोंके विशेषज्ञ मन्त्रियोंके बिना न तो स्वराष्ट्रपरराष्ट्रविषयक उचित संवाद चल सकते और न उन संवादों में से कोई लाभकारी परिणाम निकाला जा सकता है । इसलिये राज्याधिकारियोंको प्रभावशाली बुद्धिमान् मन्त्रियों की भावश्यकता रहती है।
"सहायताध्यत्वं राज्यत्वम्" राज्यसंस्था व्यक्तिगत संस्था नहीं है ।