________________ स्त्रियोंका भूषण 411 ( गौरवहीन लोग) नास्त्यर्थिनो गौरवम् // 448 // समाजमें याचकका तथा कृपणधनीका सम्मानपूर्ण स्थान नहीं है। विवरण--- अर्थी शब्द याचक तथा धनी दोनोंका वाचक है। समाजमें न तो याचकका सम्मान पूर्ण स्थान है क्योंकि वह प्रार्थी बन जाने से दीन है और न समाजमें उस अर्थपिशाच धनीका कोई सम्मानित पद है जो समाजको लूटकर धन कमाता है और अनिवार्य रूप से सामाजिक अभ्यु. स्थान में अपना मार्थिक सहयोग न देनेवाला कृपण होता है / (त्रियोंका भूषण ) स्त्रीणां भूषणं सौभाग्बन // 449 // पतिव्रता तथा पतिपुत्रादिसे सौभाग्यशालिनी रहना स्त्रियों का भूषण है। सौभाग्यलक्षणं स्त्रीणां पालिवयं प्रकीर्तितम् / पतिव्रता होना ही स्त्री के लिये गौरव की बात है। विनय, क्षमा, गृह. कार्य-दक्षता, शिल्प, वैदुष्य, धीरता, ईश्वरभक्ति तथा पातिव्रत्य स्त्रियों के सौभाग्य हैं। * पतिपत्न्योर्विवाहमान्त्रिकसंस्कारणकात्म्यात् पतिमत्वं पातिव्रत्यं च परं सौभाग्यम् / ' विवाहकालके मान्त्रिक संस्कारों से पतिपत्नीक! ऐकात्म्य होजाता है। इसलिये पातिव्रत्य तथा सुयोग्य पतिवाली होना स्त्रियों का सौभाग्य है / मम व्रते ते हृदयं दधामि / मम चित्तमनु चित्तं तऽस्तु / / विवाहकालमें पति पत्नीसे वेदकी भाषामें कहता है कि मैं तुम्हारे चित्त को अपने स्वीकृत व्रतमें संयुक्त करता हूं। तुम्हारा बिन मेरे उद्दे. ३यकी अनुकूलता करता रहे।