________________ 408 चाणक्यसूत्राणि वक्ताके लिये महा अनिष्टकारी रोष पैदा होकर निश्चित हानिकारक हो सकता है / इसलिये राजशक्तिवालों के साथ सुविचारित सुसभ्य वाम्यवहार होना चाहिये / परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि मनुष्य औरोंके साथ अप्रिय भाषण करे / यहां केवल राजाके साथ वाम्यवहारकी परिपाटी बताई जा रही है / राजाके ही समान देव, विष, गुरु, साधु, नारी, महापुरुष तथा अपरिचित लोगोंके साथ भी संयत भाषण होना चाहिये। इस सूत्रसे राजकार्योंके विरुद्ध असभ्य समालोचना उसके भावी कार्यों पर निराधार दोषारोपण या राजनियमोंका उलंघन आदिका भी निषेध समझना चाहिये / इन कार्योंसे राजा प्रजा दोनों की हानि होती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि राज्यव्यवस्थामें दुनिति निन्दनीय होती है। परन्तु ध्यान रहे कि उस दुनितिका उत्तरदायी अकेला राजा नहीं होता। राजचक्र (राजाके भृत्यवर्ग) तथा वह राष्ट्र जिसमें अत्याचारित रहता है दोनों ही राजकीय दुनितिके उत्तरदायी होते हैं। राजा स्वयं अपनी इच्छामात्रसे राष्ट्रका राजा नहीं बना करता / वह राष्ट्र की ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्म. तिसे राज्यपरिचालन का भार ग्रहण किया करता है / यदि कोई राष्ट्र अपनी सम्मतिका दुरुपयोग करके किसी अयोग्य व्यक्तिको राज्यसिंहासनपर बैठा दे तो उस राजकीय अयोग्यताका अपराधी स्वयं राष्ट्र होता है। योग्य राजाका चुनाव करना और उसे योग्य बने रहने के लिये विवश रखना राष्ट्रका ही कर्तव्य है। राष्ट्र तो राजाको ठीक रखनेका उत्तरदायी है और राजाका कर्तव्य राष्ट्रको ठीक रखना है / यह उभयपक्षीय राष्ट्रीय कर्तव्य है / यदि राजा अयोग्य है तो समझना होगा कि राष्ट्र अयोग्य है / अयोग्य राजा अयोग्य राष्ट्रका प्रतिनिधि होता है / इस दृष्टि से राष्ट्रका संशोधन न करके, राजाके व्यक्तित्वपर दोषारोपण करना उसे असंशोधित रहने देकर ऋद्ध तथा प्रतिहिमापरायण कर देना मात्र होजाता है। जबतक राष्ट मसंशोधित रहेगा तबतक राजसिंहासनपर अयोग्य लोग ही राज्य करते रहेंगे।