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चाणक्यसूत्राणि
विवरण--- जीवनमें धनैश्वर्य संग्रह के प्रयत्नका निरन्तर चलते रहना पुरुषके लिये रसायन है । जैसे रसायनसे वीर्यादिकी वृद्धि होती है, इसी प्रकार धनसंग्रह सुखजनक होकर जरा, व्याधिविनाशक तथा दैहिक सुख देनेवाला होता है । जरा तथा न्याधिके विनाशक द्रव्योंको “ रसायन " कहा जाता है।
दीर्घमायुः स्मृतिमधामारोग्यं तरुणं वयः।
देहीन्द्रियवलं कान्ति नरो विदद् रसायनात् ॥ मनुष्य रसायनसे दीर्घ आयु, स्मृति, मेधा, मारोग्य, यौवन, देहबल, इन्द्रियशक्ति तथा कान्ति प्राप्त करे । ये ही सब काम धनसंग्रहसे भी होते हैं। इसलिये वह भी रसायन है और उस (धनसंग्रह) का काम जीवन. पर्यन्त चलना चाहिये ।
( याचकों का अपमान अकर्तव्य )
नार्थिववज्ञा कार्या ॥ ४३७ ।। याचकोंका अपमान न करना चाहिये । विवरण --- अधिकारी भर्थियोंकी की जा सके तो उनकी देश, काल, पात्रके अनुसार यथोचित सहायता कर देनी चाहिये । न की जा सके तो उनके समक्ष विनय तथा सहानुभूति के साथ मधुरवाणीसे अपनी असमर्थता प्रकट कर देनी चाहिये ।
तृणानि भूमिरुदकं वाक्चतुर्थी च सूनृता । एतान्याप सतां गेहे नाच्छिद्यन्ते कदाचन ॥ मासन, भूमि, जल, मीठी वाणी ये तो सत्पुरुषों के घरोंसे कभी नष्ट नहीं होती। सत्यकी सेवा करने के लिये धनका सदुपयोग करना ही धनवानका दानधर्म है। जब कोई सत्यसेवक सत्यार्थदान करनेकी दृष्टिसे पात्र अपात्र विचारकर किपी सत्यनिष्ठको अपने द्वारपर पानेका सौभाग्य प्राप्त करे, तब उसे उसकी उचित सेवाके द्वारा सत्यकी सेवा करके कृतार्थ होजाना चाहिये । सत्य ही पात्रापात्र विचारकी कसौटी है ।