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आचार पालनके लाभ
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( मनुष्यमात्रका भूषण )
सर्वस्य भूषणं विनयः ॥ ४२८ ॥ विनय ( अर्थात् सत्यनारायणकी सेवामें आत्मसमर्पण करके सत्यस्वरूप सुशील, नम्र, विनीत, कर्तव्यशील बन जाना ) मनुष्यमात्रका भूषण है।
अकुलिनोऽपि विनीतः कुलीनाद्विशिष्टः ॥ ४२९ ।। कुलीनताक अहंकार में डूबे हुए सत्याहीन, अविनीत व्यक्तिकी अपेक्षा अप्रतिष्टित घरमें उत्पन्न होनपर भी सत्यको शिरोधार्य करके जीवनयापन करनेवाला विनीत व्यक्ति श्रेष्ठ होता है ।
( आर्यत्वकी पहचान ) ( अधिक सूत्र ) आचारवान् विनीतोऽकुलीनोऽपि आर्यः । विनय तथा आचारसे सम्पन्न अनुष्य उच्च कहलानेवाले कुलमें उत्पन्न न होने पर भी आय ही है।
विवरण---- सदाचार तथा विनयसे हीन आर्य नामधारी भी मनायं ही कहाता है । भाचार तथा विनय ही मार्यत्वके हेतु हैं। अमर में आर्य, सभ्य, सजन, साधु इन सबको प्रकार्थक कहा है
" महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधवः । ' नीति में कहा है___ " अकुलीनोऽपि शास्त्रज्ञो देवतेरपि पूज्यते । " देवं भी शास्त्रमर्यादामें रहनेवाले अकुलीनकी पूजा करते हैं : -
( आचार पालनके लाभ ) आचारादायुर्वर्धते कीर्तिश्च ।। ४३० ॥ सदाचार पालनेसे आयु तथा यशकी वृद्धि होती है। विवरण- सदाचारसे इन्द्रियविजय, उससे स्वास्थ्य, उप्सले इन्द्रिय