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________________ चाणक्यसूत्राणि संसार में आया है । निष्काम सत्यनिष्ठ व्यक्तिका सत्यनिष्ठ जीवन कर्तव्यमय तपोनिष्ठा में परिणत होजाता है । सत्य के परिस्थिति भेदसे समता, दम, अमात्सर्य, क्षमा, लज्जा, तितिक्षा, अनसूया, त्याग, ध्यान, आर्यता, धृति, दया तथा अहिंसा ये तेरह रूप हैं । ३८० सत्यं च समता चैव दमश्चैव न संशयः अमात्सर्य क्षमा चैव हीस्तितिक्षाऽनसूयता । त्यागो ध्यानमथार्यत्वं धृतिश्च सततं दया अहिंसा चैव राजेन्द्र सत्याकारास्त्रयोदश ॥ ( स्वर्गका साधन ) सत्यं स्वर्गस्य साधनम् ॥ ४१८ ॥ सत्यनिष्ठारूपी स्वर्गका साधन भी तो स्वयं सत्य ही है। विवरण- मानवहृदयवासी सत्वका एकमात्र काम यह है कि वह स्वार्थी प्रवृत्तियका परिमार्जन करके व्यवहारको परमार्थ बना डाले | सत्य स्वार्थ भरी प्रवृत्तियों का परिमार्जन करके मनुष्यको स्वर्गस्थ देवता बना देता है । मनुष्य यह जाने कि सत्य स्वयं ही अपना साधन है और स्वयं ही अपना साध्य है | सत्यनिष्ठ मनुष्य मयसे दूसरे किसी भी साधनको नहीं अपनाता । सत्य स्वातिरिक्त अवलम्बन नहीं चाहता । सत्यको अपनाने के लिये सत्यातिरिक्त साधनोंको अपनाना सत्यको त्यागकर असत्यको अपनाना होता है | मनुष्य सावधान रहे और सत्यके साधनों के धोखे में सत्यको दी तिलांजलि न दे बैठे। जैसे पुण्यपापकारियों के अन्तरात्माका आधा भाग न्यायाधीश तथा बाधा दण्डनीय अपराधी या साधुवादका अधिकारी बन जाता है, इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्यका आधा भाग तो उसीके प्राप्य सत्यनारायणके सिंहासनपर जा बैठता है, तथा उसीका आधा भाग उसका आराधक बन जाता है | हम सब सृष्टिमें स्पष्ट अनुभव कर रहे हैं कि प्रत्येक मानव के भीतर सत्य ही
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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